सामाजिक वैज्ञानिक मजूमदार और मदन के अनुसार, जाति एक बंद (क्लोज्ड) वर्ग है। कूले का कहना है कि जब कोई वर्ग पूरी तरह वंशानुक्रम पर आधारित होता है, तो उसे जाति कहा जाता है। एन.के. दत्त ने जाति व्यवस्था के प्रमुख लक्षण बताएं हैं, जिनमें शामिल हैं—जाति से बाहर विवाह का निषेध, भोजन व खानपान पर प्रतिबंध, निश्चित व्यवसाय, जन्म से सदस्यता, तथा जातिगत नियमों के उल्लंघन पर दंड।

जातियों में जेंडर आधारित भूमिकाओं और समस्याओं की चुनौतियाँ आमतौर पर पाई जाती हैं क्योंकि जाति के सदस्य अपने नियमों के प्रति निष्ठावान होते हैं। इनमें बालिका भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, पर्दा या बुर्का प्रथा, बाल विवाह, वैश्यावृत्ति, डायन प्रथा, ऑनर किलिंग, अशिक्षा, विधवा विवाह निषेध, घरेलू हिंसा, उत्तराधिकार में महिलाओं को संपत्ति से वंचित करना, महिलाओं को नौकरी करने से रोकना, तथा जातिगत अंधविश्वास जैसी समस्याएँ शामिल हैं।
अनेक जातियों में ये प्रथाएँ महिला सम्मान और गरिमा के खिलाफ हैं, जिससे महिलाएँ हिंसा, उत्पीड़न, अपशब्द, मारपीट, बाल विवाह और अशिक्षा जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। कुछ बर्बर जातियों और कबीलों में महिलाओं के प्रति अमानवीय कृत्य भी होते हैं जैसे नाक-कान काटना, सिर मूंडना, जलाना, जिंदा दफनाना आदि।
जातिगत नकारात्मक सोच नारी विकास की सबसे बड़ी बाधा है। नारी शिक्षा का अभाव भी इसी सोच से जुड़ा है। कई जातियाँ बालिकाओं को पढ़ाई के बजाय घरेलू कामों में लगाना उचित समझती हैं क्योंकि उनका मानना है कि लड़कियाँ तो ‘पराया धन’ हैं और शादी के बाद ससुराल चली जाएंगी।
जातिगत जेंडर संबंधी चुनौतियों के उदाहरण भी मिलते हैं:
- अफगानिस्तान की अफगान जाति में नारी शिक्षा पर पाबंदी,
- मुस्लिम जाति में हिजाब-नकाब प्रथा के कारण शिक्षा बाधित होना,
- हिन्दू समाज में पुत्री को परिवार का हिस्सा न मानना, उसे ‘गिरवी रखा आभूषण’ समझना,
- घर के कामों में पुरुषों का सहयोग न होना,
- दहेज प्रथा, तीन तलाक, सती प्रथा, वैश्यावृत्ति, बालिका शिक्षा की कमी, ऑनर किलिंग, बहुविवाह जैसी प्रथाएँ।
कुछ जातियों में पत्नी को अतिथि सेवा के लिए जबरन प्रस्तुत करना जैसी प्रथाएँ भी प्रचलित हैं, जो स्त्री को वस्तु समान समझती हैं। उदाहरण के तौर पर अफ्रीका की बनयानकोल जाति और एस्कीमो समाज में पत्नी को ‘उधार देना’ एक स्वीकृत परंपरा है।
जातिगत कुप्रथाओं को खत्म करने में जाति सुधारकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। जाति के नेताओं द्वारा जेंडर संबंधी समस्याओं का समाधान निकालना प्रभावी माध्यम हो सकता है। साथ ही, शासन द्वारा बनाए गए कानून भी इन कुप्रथाओं पर रोक लगाने में सहायक हो सकते हैं।