Home / Jharkhand / Khortha / श्री निवास पानुरी जी की जीवनी – खोरठा साहित्यकर

श्री निवास पानुरी जी की जीवनी – खोरठा साहित्यकर

Published by: Ravi Kumar
Updated on:
Share via
Updated on:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

खोरठा साहित्यकर श्री निवास पानुरी जी की जीवनी 

नाम- श्री निवास पानुरी
पिता का नाम– शालिग्राम पानुरी
मां का नाम– दुखनी देवी
जन्म स्थान- बरआअड्डा, कल्याणपुर, धनबाद
जन्म तिथि- 25 दिसंबर, 1920
मृत्यु- 7 अक्टूबर, 1986

खोरठा साहित्य जगत में श्रीनिवास पानुरी जी

खोरठा साहित्य जगत में श्रीनिवास पानुरी जी का नाम बहुत आदर से लिया जाता है।यद्यपि आधुनिक खोरठा साहित्य की बुनियाद ‘ब्याकुल’ जी ने रख दी थी किंतु उनकी रचनाएं बहुत उपलब्ध नहीं है।पानुरी जी भारत की आजादी के पूर्व से ही दिखते रहे होंगे ऐसा अनुमान किया जाता है परंतु उनकी एक भी रचना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित नहीं पाई जाती है |स्वतंत्रता के ठीक बाद अर्थात 1950 के आस-पास मेघदूत संस्कृत काव्य के खोरठा अनुवाद के प्रकाशन के साथ इनका नाम चर्चा में आया। इन्होंने अपने 66 साल के जीवन में लगभग 42 साल तक साहित्य का समाजिकरण करते रहे। यह सरल शब्दों को धारदार बनाने में बहुत माहिर थे। इनकी रचना प्रक्रिया में उत्तरोत्तर विकास के दर्शन होते हैं एक ओर इनकी आरंभिक रचनाएं श्रृंगार प्रधान थी तो अंतिम दौर की रचनाएं मार्क्सवादी दर्शन से पूरी तरह प्रभावित रही है ।इसका प्रमाण कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो का खोरठा काब्य – नुवाद है।

Also Read:  JSSC खोरठा हाम जीयब कइसें कहानी, लेखक चितरंजन महतो चित्रा JSSC CGL Khortha Notes

पानुरी जी के जीवन एवं रचनात्मक उपलब्धियां

पानुरी जी के जीवन एवं रचनात्मक उपलब्धियों से संबंधित प्रमुख जानकारियां निम्नलिखित है-

प्रकाशित रचनाएं 
1. बाल किरण (एकल कविता संकलन),
2. दिव्य ज्योति (कविता संग्रह),
3. मेघदूत (अनुदित काव्य),
4. तितकी (कविता संग्रह),
5. रामकथामृत (खंडकाव्य),
6. चाभी-काठी (एकांकी नाटक),
7. उद्भासल कर्ण (एकांकी नाटक),
8. आखिरी गीत (कविता संग्रह),
9. सबले बीस (20 श्रेष्ठ कविताओं का संकलन)
 
अप्रकाशित रचनाएं
1. समाधान (खंडकाव्य),
2. अग्नि – परीक्षा (खंडकाव्य)
3. पारिजात (कविता संग्रह),
4. मधुक देसे (कविता संग्रह),
5. मोहभंग (काव्य)
6. रकते भींजल पांखा (कहानी संग्रह)
रकते भींजल पांखा (कहानी संग्रह) – इसमें 9 कहानियां संकलित है, जो निम्नवत है-
1. आपन करनी दैवेक दोस,
2. कुसमी,
3. पानी पइर गेले,
4. सोकरा मांझी,
5. मनबोध,
6. बदला,
7. फूलों,
8. जादू,
9. रकते भींजल पाँखा
इनमें ‘आपन करनी दैवेक दोस’ पानुरी जी की प्रथम कहानी है और खोरठा साहित्य के शिष्ट कहानी विधा में भी इसे प्रथम कहानी माना गया है। इस लिहाज से पानुरी जी खोरठा के प्रथम कहानीकार हैं। इसके अतिरिक्त पानुरी जी की अन्य गद्द रचनाएं – निबंध, संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा आदि है ।
 
अजनास नामक एक निबंध संग्रह अप्रकाशित है। आत्मकथा डायरी के रूप में प्राप्त है। जीवन के अंतिम वर्षों में इन्होंने खोरठा व्याकरण लिखना आरंभ किया था किंतु अधूरा ही रह गया ।
 
पानुरी जी के समग्र रचना कर्म पर विभिन्न विद्वानों के मत निम्नलिखित है-
1.“मैं तो इसे वैसा ही प्रयास मानता हूं जैसा बाल्मीकि ने संस्कृत के लिए अथवा सिद्धि कवियों ने हिंदी के लिए किया ” – रामदयाल पांडे, हिंदी साहित्यकार (पानुरी जी को लिखी गई चिट्ठी – 1954)
 

2. “मुझे तो अद्भुत युग-चेतना पानुरी जी की रचनाओं से अनुभूत हुई है। कितनी ही पंक्तियों से मै अत्यधिक प्रभावित हुआ हूँ। उनकी कविताएं बड़ी ही संपर्क, उद्बोधक, तथा ओजश्विनी, तेजस्विनी है।” – रामदयाल पांडे, हिंदी साहित्यकार

3. “छोटानागपुरी भाषाओं में सर्वप्रथम खोरठा भाषा में श्रीनिवास पानुरी जी को अनुवाद करने का श्रेय प्राप्त है। इस अनुवाद में पानुरी जी ने मुक्त छंद का प्रयोग किया है जो अपने आप में एक नई चीज है। पानुरी जी की तपस्या अनुकरणीय है । इनकी तपस्या के आगे आदर से सिर झुक जाता है” – राधा-कृष्ण, रांची, हिंदी साहित्यकार

Also Read:  Sohan Lage re Book । Khortha Shist Geet । Jssc Khortha Notes

3. महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध कृति ‘मेघदूत’ का ने खोरठा में अनुवाद कर पानुरी जी ने अद्भुत काम किया है। कहानी न होगा कि पानुरी जी ने मेघदूत को उसकी उचित जमीन पर उतार दिया है।लोक भाषा का सहारा लेकर जनपद की कथा जनपदियों तक पहुंच गई है।” – मनमोहन पाठक धनबाद हिंदी साहित्यकार

4. “पानुरी जी ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने अपना साहित्यिक जीवन मानवता के हित में समर्पित कर सजग और सक्रिय होकर जिया । ” – डॉ. ए. के. झा

5. “श्री निवास पानुरी खोरठा साहित्य के अग्रदूत तथा रविंद्रनाथ ठाकुर थे।बांग्ला साहित्य के बहुआयामी विकास में टैगोर जी का जो स्थान निरूपित है खोरठा में वही स्थान पानुरी जी का है।” – श्याम सुन्दर महतो

6. “श्री निवास पानुरी साहित्य के भीष्म पितामह थे।” – विश्वनाथ दसौंधी ‘राज’

7. “पानुरी जी की रचनाओं के शब्द-शब्द के मध्य जो खाली जगह है वहां आम आदमी खड़ा है।” – डॉ. बी. एन. ओहदार

8. “खोरठा साहित्य के नवयुग को डॉ. बी. एन. ओहदार ने ‘पानुरी युग‘ की संज्ञा दी है। “खोरठा भाषा एवं साहित्य का उद्भव और विकास

Also Read:  JSSC खोरठा कविता - हामनी सब एक, आगु कर आपन देश, जय जवान जय किसान JSSC CGL Khortha Notes

9. “पानुरी जी आमजन की भाषा में आम जन के कवि हैं।”– वीर भारत तलवार, संपादक ‘गालपत्र’

पत्र पत्रिका का प्रकाशन

मातृभाषा एवं खोरठा नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया

संस्थाओं का गठन

लोक सेवा संघ, धनबाद खोरठा साहित्य समिति, धनबाद

पानुरी जी की रचनाओं के कुछ प्रमुख अंश

1. “आइझ नायं तो काइल हमर बात माने हतो गोड़ेक कांटा दांते धइर टाने हतों”

2. “नाच बांदर नाच रे, मोर चाहे बाँच रे ओकर उंच दलान, तोर खातिर गाछ रे”

3. “खइट खइट दिन राइत, ककर नखइ पेंटे भात ककर नखइ गातें लुगा, ककर कोपइ जाड़ें गात”

4. “मानभूमेक माटी तरें, मानिक मोती हीरा फरे ताव हिआंक लोक पेटेंक जालायं मोरें ।”

5. “संइच संइच राख जे धन दे सुगुम धुराइ दे एखन मिल बहरइतो गरीब जखन”

6. “हामनिक मांझे कुछ बांदर चीरे खोजथ मायेक आँचर उगलथ जहर, रचथ नर मेध”

7. “खोरठा भाषा कतेक सुंदर बुझे बांदर बुझे गीदर”

8. “ऊ की चिन्हत हमरा जेकर आँइखे गीध-चील-लकरा”

Leave a comment