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प्रभावशाली शिक्षण के प्रकार | Types of Effective Teaching B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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शिक्षण एक महत्वपूर्ण कार्य है जो हमारे समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अच्छे शिक्षक का महत्व अविश्वसनीय है क्योंकि वह छात्रों को सही दिशा और निर्देश प्रदान करता है। शिक्षण के कई प्रकार होते हैं जो छात्रों के विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करते हैं।

Types of Effective Teaching
Types of Effective Teaching

यहां हम आपको कुछ प्रभावी शिक्षण के प्रकार बता रहे हैं जो  निम्नलिखित हैं-
(i) किसी भी कार्य को सरल प्रक्रिया से जटिल प्रक्रिया की तरफ मोड़ना- शिक्षण प्रक्रिया में किसी भी कार्य को सर्वप्रथम सरल प्रक्रिया से ही शुरू किया जाता है। जब बालक सरल कार्यों को भली प्रकार सीख जाता है तब उसे कठिन कार्यों की तरफ मोड़ा जाता है। यदि अध्यापक पहले कोई कठिन बात समझाता है तो छात्र उसे भली प्रकार नहीं समझ पाते हैं तथा अधिगम में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है।

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(2) स्थूलता से सूक्ष्मता की तरफ मोड़ना- प्रत्येक अध्यापक को सर्वप्रथम स्थूल बातों को ध्यान में रखकर सूक्ष्म बातों की तरफ जाना चाहिये। यदि किसी भी बात के सूक्ष्म भाग को समझना है तो सर्वप्रथम उसके सम्पूर्ण भाग समझना पड़ता है। जैसे कि मानव शरीर के एक अंग का अध्ययन करना है तो सर्वप्रथम हमें उसके शरीर के समस्त अंगों का अध्ययन करना पड़ेगा। तभी जाकर हम उसके एक अंग का अध्ययन करेंगे।

(3) पूर्ण से अंश की ओर – पूर्ण से अंश की ओर ले जाने से तात्पर्य है कि जैसे हमें छात्रों को विज्ञान की जानकारी देनी है तो सर्वप्रथम हम विज्ञान के अन्तर्गत आने वाले समस्त विषय क्षेत्र बतायेंगे। तत्पश्चात् हम छात्रों को एक-एक पाठ करके समझाते जायेंगे। अर्थात् यह पूर्ण से अंश की ओर जाने की प्रक्रिया है। इस सूत्र के विषय में गेस्टाल्ट ने एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया है जिसमें पौधे के भाग’ विषय पढ़ाने के लिये पहले पौधे को दिखाया जायेगा, बाद में उसके भागों को इसी कारण से इसे पूर्ण से अंश की ओर’ का सिद्धान्त कहा जाता है।

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(4) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर- बालकों को शिक्षा देने के दौरान सर्वप्रथम उन्हें प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान करना चाहिये, तत्पश्चात् उन्हें अप्रत्यक्ष ज्ञान देना चाहिये। इससे बालकों की कल्पना शक्ति में परिवर्तन आ जाता है तथा वह सकारात्मकता की ओर बढ़ते हैं।

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(5) वास्तविकता से ज्ञान प्रदान करना इस कथन से तात्पर्य यह है कि बच्चों को ऐसे विषय का ज्ञान देना जिसमें वास्तविक तथा प्राकृतिक वस्तुओं का ही प्रयोग किया जाये, क्योंकि प्राय वस्तुओं का प्रभाव भी वास्तविक ही होता है। अतः उन्हें वास्तविकता से ही प्रतिरूप की तरफ मोड़ा जाये।

(6) आगमन विधि का प्रयोग कर ज्ञान देना- आगमन विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि है। अतः बालकों को इस विधि के द्वारा ही ज्ञान प्रदान करना चाहिये। जैसे- छात्रों को समझाकर तत्पश्चात् उनसे प्रश्न करें तो हमें पता चलेगा कि उन्हें कितना समझ में आया। यही आगमन विधि कहलाती है।

(7) अनुभवों द्वारा सिखाना – बालकों को अनुभवों के द्वारा सिखाना चाहिये। गुरुकुल जैसे विद्यालयों में आज भी छात्रों को शिक्षकों के सम्मुख तर्क करने की अनुमति नहीं होती। परन्तु यदि बालक तर्क द्वारा सीखता है तो यह अति उत्तम रहता है, क्योंकि इससे बालकों को प्रयोगात्मक ज्ञान (Practical Knowledge) प्राप्त होता है।

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(8) मनोवैज्ञानिक क्रम तथा क्रमबद्धता- बालकों के मनोवैज्ञानिक (Psychological) क्रम से तात्पर्य यह है कि बालक को उसकी जिज्ञासाओं, रुचियों तथा क्षमताओं के अनुसार ही शिक्षा दी जानी चाहिये ताकि उनका ज्ञान बढ़ाया जा सके। उदाहरणार्थ, यदि एक बालक की रुचि इंजीनियर बनने में है तथा हम उसे डॉक्टर बनाने का प्रयास करेंगे तो वह रुचिपूर्ण तरीके से ज्ञान ग्रहण नहीं करेगा। इसी प्रकार क्रमबद्धता से भी तात्पर्य यही है कि बालकों को उनकी रुचियों तथा रुझानों के अनुसार ही ज्ञान प्रदान करना चाहिये।

(9) ठोस अनुभवों द्वारा युक्तियुक्त की ओर ले जाना- ठोस अनुभव से युक्तियुक्त ओर ले जाने से यह तात्पर्य है कि बच्चों को उनके अनुभवों के द्वारा सिखाना। जैसे- कोई बालक गर्म दूध का गिलास एकदम से उठा लेता है तथा उसका हाथ जल जाता है तो वह दूध का गिलास छोड़ देता है। तब इसके विषय में हम छात्रों को तन्त्रिका तन्त्र से सम्बन्धित ज्ञान दे सकते हैं।

(10) स्वाध्याय को बढ़ावा देना- शिक्षण सूत्रों के अन्तर्गत बालकों के स्वयं अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है। इस प्रकार उपरोक्त शिक्षण सूत्रों के आधार पर हम यह ध्यान रखेंगे कि प्रकार के छात्रों को किस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाये।

(11) व्यावहारिक शिक्षण: यह शिक्षण का एक महत्वपूर्ण प्रकार है जो छात्रों को सीख को वास्तविक जीवन में लागू करने की क्षमता प्रदान करता है। इस प्रकार के शिक्षण में, छात्रों को वास्तविक जीवन के अनुभवों के माध्यम से सीख दी जाती है। इसे अधिकतर विज्ञान, गणित और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में आमतौर पर उपयोग किया जाता है।

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(12) संवेदनशील शिक्षण: यह शिक्षण का प्रकार छात्रों के भावनात्मक विकास को समझने और समर्थन करने के लिए है। इसमें शिक्षक छात्रों के साथ संवेदनशीलता और सहयोग करता है ताकि उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने में मदद मिल सके। इस प्रकार के शिक्षण में, छात्रों के भावनात्मक विकास को समझने के लिए विभिन्न क्रियाएं और उपकरणों का उपयोग किया जाता है।

(13) समय-सारणीबद्ध शिक्षण: यह शिक्षण का प्रकार छात्रों को संगठित और नियमित ढंग से सीखने की क्षमता प्रदान करता है। इस प्रकार के शिक्षण में, शिक्षक एक समय-सारणी तैयार करता है जिसमें विभिन्न विषयों की सीख के लिए निर्दिष्ट समय और अवधि होती है। यह छात्रों को नियमित और संगठित रूप से पढ़ने और सीखने की आदत डालता है।

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इन प्रकार के प्रभावी शिक्षण का उपयोग करके शिक्षक छात्रों को उच्चतम स्तर पर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। यह छात्रों के संपूर्ण विकास को समर्पित है और उन्हें वास्तविक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए तैयार करता है।

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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