बहुभाषिकता का मतलब है कि व्यक्ति या समाज अधिक से अधिक एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान रखता है और उन्हें समय के अनुसार प्रयोग करता है। यह अपने संप्रेषण के माध्यम से सामाजिक संपर्क को मजबूत करता है और साथ ही अंतर-सामाजिक समझ को बढ़ाता है। शिक्षकों को बहुभाषिकता के प्रति संवेदनशील होना चाहिए क्योंकि वे विभिन्न भाषाओं के छात्रों को समझने और संदेश पहुंचाने के क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बहुभाषिकता एक ऐसी सामाजिक सच्चाई है जो लगभग सभी देशों और समाजों में देखी जाती है, लेकिन कई बार इसे अनजाने में नकारा जाता है और इसकी स्थिति को दबाया जाता है। उदाहरण के रूप में, 1971 से पहले, पाकिस्तान ने बंगलादेश (अब बांग्लादेश) में बंगाली भाषा के प्रति हमला किया था, जो एक भाषाई समृद्धि और समाजिक न्याय के खिलाफ था।
दूसरा उदाहरण तुलसीदास जी द्वारा ‘रामचरित मानस’ को लोकभाषा अवधी में लिखने पर तत्कालीन काशी के पण्डितों का विरोध, जिससे कि उनको काशी छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ा था, एक महत्वपूर्ण इतिहास का प्रमाण है। यह घटना दिखाती है कि भाषा की भावनाओं, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के साथ गहरा संबंध होता है।
कई प्रकार की शक्तियाँ इस नृशंसता में शामिल रही हैं, जिसने इस मामले को और ज्यादा गंभीर बना दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि भाषा की प्रतिष्ठा और महत्व को लेकर समाज में उत्पन्न विवाद कितना गहरा हो सकता है।
आज हमारे देश में बहुभाषिकता को संवैधानिक रूप से स्वीकार किया गया है, लेकिन इसके प्रति उचित वातावरण और सहानुभूति अभी भी कम है। अधिकांश समाजों में एक विशेष भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान की कमी हो सकती है, जिससे बहुभाषिकता की असली समर्थन मिलने में दिक्कतें आती हैं।
मातृभाषा या राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम और सम्मान को उचित माना जाना चाहिए, क्योंकि यह समृद्धि और एकता के महत्वपूर्ण स्तंभ हो सकता है। इसके अलावा, बहुभाषिकता का अध्ययन और प्रचार भाषा-विज्ञान, राजनीति, सामाजिक विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में सामूहिक समृद्धि के लिए आवश्यक है।
- बहुभाषिकता एक समृद्ध और समृद्धिकरणशील प्रक्रिया है जो भाषाओं के संवादिता और संबंधों को समाहित करती है। इसका अर्थ है कि जितने अधिक भाषाएं एक व्यक्ति जानता है, उतने ही विभिन्न तरीकों से वह विचार कर सकता है और समाज में सहयोग कर सकता है। यह भाषाओं के अन्तर्गत साहित्य, संगीत, कला, और ज्ञान के अन्तर्निहित अध्ययन को बढ़ावा देता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक परिवर्तनों को समझा जा सकता है और अल्पसंख्यक भाषाओं की संरक्षण और उनके प्रयोग का महत्व भी स्थापित किया जा सकता है।
बहुभाषिक-वैचारिकी एक प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक संरक्षा का कार्य करती है, जो समाज में विभिन्न भाषाओं को साथ में बनाए रखने में मदद करती है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह महत्वपूर्ण है कि हमें भाषाओं को लुप्त होने से बचाया जाए, क्योंकि यह सिर्फ भाषाओं के ही नहीं, बल्कि संस्कृति के भी नुकसान का कारण हो सकता है। लुप्तप्राय भाषाओं के विकास के लिए नई भाषाएँ सीखी जा सकती हैं, लेकिन कुछ विशेष शब्दों और अभिव्यक्तियों का नुकसान हमेशा के लिए होता है, जो स्थानीय वस्तुओं, संबंधों, और प्राकृतिक घटनाओं को संदर्भित करते हैं। भाषा में इन प्रतिष्ठित शब्दों का नुकसान उन्हें विशेष ज्ञान और समझ के साथ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है।
भाषाओं का अध्ययन हमें यह सिखाता है कि प्रत्येक भाषा अपने सांस्कृतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में विशेष होती है, और इससे हमारे मानसिक प्रक्रियाओं और कौशलों पर भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के रूप में, भाषा के अलग-अलग शब्दों और अभिव्यक्तियों का उपयोग हमारी सोच और विशेष क्षमताओं को प्रेरित कर सकता है। यह अद्वितीय शब्दों और अभिव्यक्तियों का उपयोग हमें अपने विचारों को और स्पष्ट और संदर्भित ढंग से व्यक्त करने में मदद कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, भाषा की विशेषता और विशेष शब्दों का प्रयोग हमें विशिष्ट धारणाओं और संस्कृतियों के साथ जोड़ता है। इसलिए, भाषाओं के लुप्त होने से उन संबंधों और सांस्कृतिक अनुभवों का भी नुकसान हो सकता है जो उनके साथ जुड़े होते हैं। इसलिए, हमें सामाजिक और सांस्कृतिक संरक्षा के लिए भाषाओं को संरक्षित रखने के लिए प्रयास करना चाहिए।
भाषा एक उच्च स्तरीय और जटिल संज्ञानात्मक व्यवस्था है जो हमें समझने के लिए प्रेरित करती है। यह एक उत्तेजक और परिवर्तक उपकरण होती है, जो हमारे विचारों और अनुभवों को संवेदनशील रूप से व्यक्त करने में सहायक है। बहुभाषिकता हमारे मस्तिष्क को एक विशेष प्रकार की लोचनीयता प्रदान करती है, जिससे हम अपनी विचारशक्ति और बुद्धिमत्ता को और भी विकसित कर सकते हैं।
शोध दिखाता है कि द्विभाषिकता का संज्ञानात्मक प्रभाव सकारात्मक होता है, खासकर सामाजिक-भाषायी परिस्थितियों में। इससे बच्चे संज्ञानात्मक लाभ प्राप्त करते हैं और विभिन्न क्षमताओं में अधिक सक्षम होते हैं, जैसे कि संप्रत्यय निर्माण, सृजनात्मकता, और तार्किक क्षमता।
द्विभाषिकता न केवल भाषा अधिगम में बल्कि भाषा अर्जन में भी सहायक होती है। द्विभाषी बच्चे तीसरी भाषा को तुलनात्मक रूप से जल्दी सीखते हैं और उसमें कार्यात्मक दक्षता हासिल करते हैं।
बहुभाषिक बच्चों में विशेष भाषा जागरूकता होती है और उन्हें अपने भाषा व्यवहार पर विशेष नियंत्रण रखना पड़ता है, जो उनके संज्ञानात्मक व मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
व्यक्तिगत भाषा में भाषा का प्रयोग करने से बच्चों की बुद्धि का विकास होता है, जो उन्हें विचार के उपकरण के रूप में भाषा पर कार्यकारी नियंत्रण बढ़ाता है।
द्विभाषी बच्चे शब्दावली पर नियंत्रण में अंतरिक सुविधा प्राप्त करते हैं और अनुकृति में निपुणता प्राप्त करते हैं।
भाषा और संज्ञान दोनों ही सांस्कृतिक व्यवस्था के अभिन्न अंग हैं और इनकी समझ शिक्षकों में एक विशेष शिक्षण-शास्त्रीय समझ विकसित करती है।