स्वास्थ शिक्षा पे विद्यालय प्रशासक की भूमिका

विद्यालय स्वास्थ्य कार्यक्रम की सफलता के लिए उसके प्रशासक शिक्षा विभाग तथा समाज में समन्वय स्थापित करने की भूमिका में अवबोधन तथा नेतृत्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उसे विद्यालय के उत्तम स्वास्थ्य कार्यक्रम का ज्ञान होना चाहिए। साथ ही उसे उसके उद्देश्यों, लक्ष्यों, मान्य प्रक्रियाओं, मानकों तथा मूल्यांकन विधियों से भी भली-भाँति परिचित होना चाहिए। कुशल प्रशासक में इतनी व्यावहारिकता भी होनी चाहिए कि वह विद्यालय परिवार तथा स्वास्थ्य दल में उत्तम समन्वय रख सके तथा उसमें ऐसी अन्तर्दृष्टि होनी चाहिए जिसमें कि वह उस माध्यमों तथा साधनों की खोज कर सके जिनके द्वारा छात्रों के स्वास्थ्य के हित में घर, विद्यालय तथा समुदाय एक साथ मिलकर उत्तम कार्य कर सकें। यह महत्त्वपूर्ण है कि वह विद्यालय के स्वास्थ्य कार्यक्रम को सम्पूर्ण समाज के स्वास्थ्य कार्यक्रम का एक अविभाज्य अंग मानता है तथा इस सम्प्रत्यय का अनुभव अपने सहयोगियों को भी करा देता है।

विद्यालय के प्रशासक या उसके प्रतिनिधि में इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वे योजना समितियों के समक्ष विद्यालय की स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकता को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सकें तथा उनका उपयोग पूरा-पूरा कर सकें। विद्यालयों में प्रशासक अपने अधिकारों को कर्मचारी वर्ग जैसे- विभागाध्यक्ष, निरीक्षक तथा विद्यालय के प्राचार्यों में विभाजित कर सकते हैं। विद्यालय भवन तथा खेल के मैदान की स्वच्छता एवं सफाई का कार्य प्रस्तुत चिकित्साधिकारी को सौंपा जा सकता है या इस कार्य के लिए व्यायाम शिक्षक या गृह विज्ञान से सम्बन्धित सदस्य की देखभाल में भी सम्पन्न कराया जा सकता है

विद्यालय का प्रशासक सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के लिए उत्तरदायी होता है अतः वह स्वास्थ्य शिक्षकों से भी सम्बन्धित होता है। यह कार्य वह पाठ्यक्रम समिति को विभिन्न स्तरों पर पता है कि ये समितियाँ शिक्षा विभाग के अनुरूप विभिन्न स्तरों पर समुचित पाठ्यक्रम तैयार करती हैं। इसके उपरान्त विभागाध्यक्ष तथा शिक्षकगण पाठ्यक्रम को विद्यालय में क्रियान्वित करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। अतः प्रशासक को विभिन्न पदों पर नियुक्ति हेतु शिक्षा विभाग से स्वीकृति लेनी होती है। अतः यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य सम्बन्धी विभिन्न पदों के लिए आवश्यक योग्यता का ज्ञान उसे प्राप्त हो । अतः जिन प्रशासकों में उपयुक्त ज्ञान एवं योग्यता होती है, वे विद्यालयों में स्वास्थ्य कार्यक्रम को कुशलतापूर्वक क्रियान्वित करने में सफल होते हैं तथा उत्तम परिणाम प्राप्त कर सकने में सफल होते हैं।

प्राचार्य (Principal)

प्राचार्य केवल एक विद्यालय की इकाई में प्रशासक का कार्य है परिणामस्वरूप वह स्वास्थ्य के तीनों कार्यक्रमों से सम्बन्धित होती है। प्रत्येक में करता उसका उत्तरदायित्व प्रशासक के समान ही होता है किन्तु यह कार्य केवल उसके विद्यालय तक ही सीमित रहता है। इस कार्य हेतु तथा अन्य कार्यों के लिए भी यह प्रत्यक्ष रूप से प्रशासक या विद्यालय निरीक्षक के प्रति उत्तरदायी होता है । ‘छोटे विद्यालयों में प्राचार्य को स्वास्थ्य कार्यक्रम तैयार करने में तथा क्रियान्वित करने में विद्यालय चिकित्सा अधिकारी तथा विद्यालय परिचारिका के साथ मिलकर कार्य करना होता है।

प्राचार्य के लिए आवश्यक है कि वह अपने सहयोगी कर्मचारियों को विद्यालय की स्वास्थ्य सम्बन्धी नीति तथा प्रक्रियाओं से अवगत करा दे। विद्यालय में सुरक्षित तथा स्वच्छ वातावरण निरन्तर आवश्यक रूप से बनाये रखना चाहिए। इसमें पर्याप्त प्रकाश, स्वच्छता, बैठक, प्रयोगशाला की सुरक्षा, सन्तोषजनक भोजन, कक्ष तथा अन्य सुविधाएँ, अग्निशमन, व्यायाम तथा नागरिक सुरक्षा एवं अन्य अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी बातें सम्मिलित हैं। समय-समय पर इनका निरीक्षण किया जाना चाहिए तथा समस्त सुझावों का तत्काल पालन करना चाहिए। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए प्राचार्य को अपने कर्मचारियों के अतिरिक्त प्रजा कार्य विभाग, स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों, पुलिस तथा नागरिक सुरक्षा विभाग के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भी प्राचार्य के कुछ कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व हैं ।

प्राचार्य को विद्यालय के आस-पास की विस्तृत समुदाय की स्वास्थ्य समस्याओं, सुविधाओं तथा वालों में भली-भाँति परिचित होना चाहिए। उसका परिचय नेताओं तथा कार्यकर्त्ताओं से भी होना चाहिए। उसमें इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वह बालक शिक्षक संघ की शक्ति को विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम की प्रगति में लगा सके। उसे विद्यालयी स्वास्थ्य समितियाँ बनाने में सहयोग देना चाहिए तथा शिक्षकों, छात्रों एवं माता-पिता का ध्यान स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रकरणों की ओर आकर्षित करना चाहिए।

इन समस्त तत्त्वों को कार्य रूप में परिणत करने हेतु प्राचार्य में कुशलता, सहानुभूतिपूर्ण अन्तर्दृष्टि तथा सामान्य स्वास्थ्य के ज्ञान का अच्छा अवसर होना चाहिए। उसे स्वयं को स्वास्थ्य दल का सदस्य मानना चाहिए तथा अपने कार्यों का भली-भाँति निर्वाह करना चाहिए तथा दल के अन्य सदस्यों के साथ सहयोग करना चाहिए। ऐसा करने के लिए उसे विद्यालय के प्रत्येक स्वास्थ्य कर्मचारी की योग्यता एवं उत्तरदायित्वों से परिचित होना आवश्यक है। कभी-कभी प्राचार्य अपने कार्यों की विविधता एवं व्यस्तता के कारण अपने कर्मचारियों में से ही किसी को विद्यालय के स्वास्थ्य कार्यों के लिए नामांकित कर देता है।

निर्देशन परामर्शदाता (Guidance Counsellor)

यद्यपि छात्रों की अनुशासनात्मक एवं शैक्षणिक समस्याओं के समाधान हेतु निर्देशन परामर्शदाता की भूमिका को निःसन्देह रूप से मान्य कर लिया गया है किन्तु स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुधा अब भी या तो उसकी उपेक्षा की जाती है या उसका कार्य या मूल्यांकन भली-भाँति नहीं किया जाता है। व्यक्तिगत अनुशासन तथा समायोजन की कठिनाइयाँ तथा विद्यालय में असफलता की जड़ का वास्तविक स्रोत मूलतः स्वास्थ्य समस्या शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक में निहित रहती है।

वास्तव में निर्देशन परामर्शदाताओं द्वारा बार-बार यह दोहराया जाता है कि उनके समस्या प्रकरणों में से साठ से सत्तर प्रतिशत प्रकरण किसी-न-किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या से सम्बन्धित रहते हैं। बहुधा इस प्रकार की समस्याएँ आकृति, पोषण, शारीरिक दोष या बाधा, शारीरिक खेलों या विद्यालयी अन्य कार्य-कलापों में अत्यधिक भाग लेना या उनके प्रति अरुचि प्रकट करने में केन्द्रित रहती है। धन की समस्या भी शोषण, वस्त्र, यातायात , नींद तथा विश्राम या विद्यालय से अनुपस्थिति को प्रभावित कर सकता है। इस प्रकार की विभिन्न समस्याओं का समुचित रूप से सामना करने के लिए आवश्यक है कि बच्चे के विकास, व्यक्तिगत तथा समुदायिक स्वास्थ्य तथा विद्यालय स्वास्थ्य के सम्बन्ध में परामर्शदाता का अध्ययन गहन होना चाहिए ।

प्राथमिक विद्यालय स्तर पर निर्देशन का मुख्य उद्देश्य यह रहना चाहिए कि वह कर समस्याओं को उत्पन्न होने से पहले रोक दे तथा समस्या के उत्पन्न होने पर उसको प्रथम चरण की अवस्था में ही पहचान ले जिससे कि वे समस्याएँ माध्यमिक विद्यालय स्तर पर विकराल रूप धारण न कर लें।

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