शिक्षा की गुणवत्ता के सिद्धान्त | Principles of Quality Education B.Ed Notes

शिक्षा की गुणवत्ता क्या है?

शिक्षा की गुणवत्ता का मतलब है कि शिक्षा की प्रक्रिया उच्चतम मानकों को पूरा करती है और छात्रों को संपूर्ण विकास के लिए तैयार करती है। एक गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए, शिक्षकों को उच्चतम मानकों का पालन करना चाहिए और छात्रों को उनके रुचियों, योग्यताओं, और रूपांतरण क्षमता को विकसित करने का मौका देना चाहिए।

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शिक्षा की गुणवत्ता के सिद्धान्त

शिक्षा एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हमें ज्ञान, समझ, और नई कला का अध्ययन करने का मौका देती है। शिक्षा हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षा की गुणवत्ता भी उसकी महत्वपूर्ण विशेषता है जो हमें एक अच्छे और सफल जीवन के लिए तैयार करती है।

हमारे विचार से शिक्षा की गुणवत्ता के निम्नांकित सिद्धान्त होते हैं-

शिक्षा में गुणवत्ता एक कारक के द्वारा ही नहीं लाई जा सकती। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता इसीलिए कई धनात्मक कारकों के कार्यरत होने से ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आ सकता है।

  • शिक्षा की गुणवत्ता प्रोत्साहन उपलब्धि प्रेरणा (Achievement motivation) पर निर्भर होती है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता सहयोगी प्रयास (Collective efforts) से ही सम्भव हो सकती है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता प्रशासकों, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के परस्पर तथा निरन्तर सहयोग से ही सम्भव हो सकती है।
  • कर्मचारियों, शिक्षकों, और विद्यार्थियों के सामने सम्यक परिणाम में दण्ड का भय और पुरस्कार की आशा रखी जानी चाहिए।
  • शैक्षिक गुणवत्ता और सफलता को पाने के लिए नैतिक या समाज द्वारा मान्य मूल्यों से प्रेरित होकर कार्य का प्रयास किया जाना चाहिए न कि अनैतिक मूल्यों व साधन जैसे नकल करना, चुराना, डराना, धमकाना झूठ बोलना आदि के द्वारा।
  • नवाचार अथवा नयी विधियों, कार्य नीतियों, नई पुस्तकों, नये अनुभवों, नये प्रयासों से शिक्षा में गुणवत्ता आती है।
  • पाठशालाओं के शैक्षिक पक्ष का निरन्तर तथा गहराई से सहृदय तथा प्रेरणादायक निरीक्षकों (Inspectors or supervisors) द्वारा निरीक्षण करने से उस संस्था का शैक्षिक स्तर सुधरता है।
  • शिक्षा प्रशासन में जितनी अधिक प्रजातन्त्रीय कार्य व्यवस्था तथा सभी सम्बन्धित कार्यकर्त्ताओं की जितनी अधिक सहभागिता होगी, उतनी ही उस शिक्षा संस्था की शैक्षिक गुणवत्ता उत्तम होगी।
  • एक ही स्तर की विविध कक्षाओं के विद्यार्थियों और शिक्षकों में धनात्मक शैक्षिक प्रतियोगिताएँ (Positive Academic Competitions) आयोजित करते रहने से शिक्षा की गुणवत्ता में अभिवृद्धि होती है। उनमें जितनी विस्तृत सामाजिक भागीदारी (Social Participation) होगी, उतनी ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  • जितना अधिक परम्परागत विधियों और शैक्षिक परम्पराओं (जैसे रटना) पर जोर दिया जाता रहेगा, उतनी ही शिक्षा की गुणवत्ता निम्न होगी।
  • पाठ्यक्रमों को नया तथा प्रगतिशील बनाने तथा पाठ्य पुस्तकों को नया संशोधित नये गुणवत्ता में सुधार आएगा। अनुभवी व ज्ञान की इकाइयों से युक्त करने से शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ती है।
  • शिक्षा को जितना अधिक विद्यार्थी केन्द्रित (Learner-centered) व विद्यार्थी द्वारा संचालित बनाया जायेगा उतना ही शीघ्र और उत्तम शैक्षिक सुधार व गुणवत्ता की अभिवृत्ति होगी।
  • शिक्षकों की कुशलता या गुणवत्ता सुधारे बिना शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना असम्भव है।

ये सभी सिद्धांत वास्तव में शिक्षा सुधार की उप-परिकल्पनाएँ हैं जिनका परीक्षण किया जाना चाहिए। इन्हें अपनाकर शिक्षकों को क्रियात्मक अनुसंधान करना चाहिए ताकि उन्हें प्रचलित अप्रभावी या असफल प्रवृत्तियों में परिवर्तन और सुधार लाने के लिए तथ्यात्मक ज्ञान प्राप्त हो सके।

इन सिद्धान्तों के पालन से, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और छात्रों को एक स्थिर और सफल भविष्य के लिए तैयार किया जा सकेगा। यह उन्हें न केवल ज्ञान और कौशल की प्राप्ति में मदद करेगा, बल्कि उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को भी बढ़ावा देगा।

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