Home / B.Ed Notes / शिक्षण के सूत्र | Maxims of Teaching B.Ed Notes by Sarkari Diary

शिक्षण के सूत्र | Maxims of Teaching B.Ed Notes by Sarkari Diary

Published by: Ravi Kumar
Updated on:
Share via
Updated on:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें ज्ञान, सूक्ष्मता और नई कला का अध्ययन करने की संभावना देती है। इसलिए, शिक्षा का महत्व असाधारण है। शिक्षण के सूत्र हमें सही दिशा में ले जाते हैं और हमें अपने जीवन के लिए तैयार करते हैं।

शिक्षण के सूत्र Maxims of Teaching (B.Ed Notes) - Sarkari DiARY

शिक्षण के सूत्र (Maxims of Teaching)

शिक्षण कार्य सरल हो, सुबोध हो, स्पष्ट हो और आकर्षक हो इसके लिए कुछ शिक्षण सूत्रो का उल्लेख किया जाता है जो निम्न है-

(1)ज्ञात से अज्ञात की ओर (From Known to Unknown) – बालकों को जो नया ज्ञान दिया जाए वह उनके पूर्व ज्ञान पर आधारित होना चाहिए।

(2) स्थूल से सूक्ष्म की ओर (From Concrete to Abstract)- स्थूल वस्तु का ज्ञान कराकर बालकों को सूक्ष्म बातें बतलायी जायें।

(3) सुगम से कठिन की ओर (From Easy to Difficult)- पहले बालकों को सुगम पाठ पढ़ाने चाहिए, उसके उपरान्त कठिन पाठों को लिया जाए।

(4) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर (From Direct to Indirect or Seen to Unseen) – बालक ने जो वस्तु देखी है, पहले उसके बारे में बतलाया जाए फिर अनदेखी वस्तु की चर्चा की जा सकती है।

Also Read:  विषय आधारित शिक्षण में शिक्षकों के लिए आवश्यक कौशल

(5) विशेष से सामान्य की ओर (From Specific to General)- पहले छात्रों के सामने विशिष्ट उदाहरण रखे जाएँ फिर नियम निकलवाये जायें।

(6) अनिश्चित से निश्चित की ओर (From Indefinite to Definite) – पहले बालक का ज्ञान अनिश्चित और अस्पष्ट होता है, अध्यापक द्वारा स्पष्ट कर निश्चित दिशा देनी चाहिए उदाहरणस्वरूप किसी भौगोलिक प्रदेश या ऐतिहासिक घटना के सम्बन्ध में बालक का ज्ञान अस्पष्ट होता है अध्यापक उनसे सम्बन्धित विभिन्न बातें बतलाकर उसके ज्ञान को निश्चित दिशा दे सकता है।

(7) पूर्ण से अंश की ओर (From Whole to Parts) – बालक पहले पहले पूर्ण रूप से सोचता है। वस्तुओं के बारे में उसके विचार खण्डों में नहीं होते। उसने हाथी देखा, वह पूर्ण हाथी के बारे में सोचता है उसके अंशों के बारे में नहीं। उसने लोहे की अलमारी देखी, वह पूरी अलमारी के बारे में ही विचार करता है उसके खण्डों के बारे में नहीं।

Also Read:  What are the objectives of ventilation?

इसलिए पहले बालक को पूरी बात बताई जाए तत्पश्चात् उसके भागों की चर्चा की जाए।

(8) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (From Analysis to Synthesis) – बालक को सम्पूर्ण ज्ञान देने के बाद वस्तु के अंगों की चर्चा की जाए। तत्पश्चात् उस वस्तु के अंगों में सामंजस्य स्थापित कर फिर सम्पूर्ण वस्तु की ओर आना चाहिए। इससे बालक के ज्ञान को तर्कपूर्ण बनाया जाए।

(9) आगमन से निगमन की ओर (From Deduction to Induction) – पढ़ाने की दो विधियाँ हैं-

  • (i) निगमन विधि (Deductive Method) – इसमें पहले नियम बताये जाते हैं फिर उदाहरण दिये जाते हैं।
  • (ii) आगमन विधि (Inductive Method) – यहाँ सर्वप्रथम उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं।

फिर इन उदाहरणों के आधार पर नियम या सिद्धान्त विकसित किये जाते हैं। इन दोनों विधियों में आगमन विधि श्रेष्ठ है क्योंकि विद्यार्थी स्वयं उदाहरणों पर विचार करते है और स्वयं ही कोई नियम विकसित करते हैं। इस विधि में बालक मानसिक रूप से सक्रिय रहते हैं और उनकी सीखने की क्रिया अधिक प्रभावयुक्त हो जाती है।

Also Read:  लोक संगीत

शिक्षण के सूत्र का महत्व

शिक्षण के सूत्र हमें सही राह दिखाते हैं और हमें सफलता की ओर ले जाते हैं। ये सूत्र हमें ज्ञान, सूक्ष्मता, स्वाध्याय और सहयोग के माध्यम से विकास करने की संभावना प्रदान करते हैं। शिक्षण के सूत्र हमें समाज के साथी बनाते हैं और हमें एक बेहतर दुनिया के निर्माण में सहयोग करते हैं।

इसलिए, हमें शिक्षा के सूत्रों का पालन करना चाहिए और अपने जीवन को सफल बनाने के लिए शिक्षा के माध्यम से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करनी चाहिए।

Photo of author
Published by
Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

Related Posts

Leave a comment