मानव जीवन में व्यक्तिगत स्वच्छता अत्यन्त आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है। व्यक्तिगत स्वच्छता के अभाव में छात्र की केवल बाह्य आकृति ही अनाकर्षक नहीं हो जाती है अपितु वह उसकी कार्य क्षमता को भी प्रभावित करती है। छात्र ने स्नान नहीं किया है तो उसके शरीर से पसीने की बदबू आ जाती है ओर कुछ दिनों में यह संक्रामक रोग का रूप धारण कर सकती है अतः इसमें छात्र के हृदय में स्फूर्ति का अभाव होगा। इसी प्रकार यदि छात्र के वस्त्र स्वच्छ नहीं हैं या दाँत गन्दे हैं, नाखून बढ़ हुए हैं तो वह अन्य छात्रों की समता में स्वयं को हीन अनुभव करेगा। छात्र की यह हीनता की भावना उसकी कार्यक्षमता को तो दुष्प्रभावित करेगी साथ ही यह भी हो सकता है कि वह कक्षा से पलायन करने लगे। अतः शिक्षक का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि जैसे वह कक्षा में प्रवेश करे वैसे ही सर्वप्रथम उसे छात्रों की व्यक्तिगत स्वच्छता की ओर ध्यान देना चाहिए। इस कार्य में परिचारिका का भी सहयोग लेना लाभप्रद होगा ।
शरीर के विभिन्न अंगों की देखभाल
स्नान से लाभ और स्नान करने का नियम- बालकों में रोज स्नान करने की आदत डालनी चाहिए। त्वचा में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिनके द्वारा पसीना निकला करता है। स्नान से यह छिद्र खुल जाते हैं और त्वचा भी देखने में स्वच्छ मालूम होती है। बालक गर्म और ठण्डे दोनों प्रकार के जल से ऋतु के अनुसार स्नान कर सकते हैं। गर्मियों के दिनों में ठण्डे जल से स्नान लाभप्रद होता है। जाड़े के दिनों में गर्म जल का प्रयोग करना चाहिए, अन्यथा ठण्ड लग जाने की आशंका रहती है।
बालों की स्वच्छता- बालों की सफाई भी अत्यन्त आवश्यक है। सिर के बालों को सप्ताह में कम-से-कम दो बार धोना चाहिए। बालों में सुखाने के बाद उनमें तेल डालना चाहिए।
नाखूनों की स्वच्छता– शिक्षक को बालकों के नाखूनों की ओर भी विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए क्योंकि नाखूनों का व्यक्तिगत स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि बालकों के नाखून बढ़े हुए हैं तो यह स्वाभाविक है कि उनमें गन्दगी भर जाएगी। यह गन्दगी कई प्रकार के विषैले कीटाणुओं को जन्म दे सकती है तथा यह कीटाणु भोजन करते समय बालक के शरीर में प्रवेश करके उसे रुग्ण बना सकते हैं। अतः बालक को रोग के संक्रमण से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक देखें कि बालक के नाखून बढ़े हुए तो नहीं हैं यदि नाखून बढ़े हों तो विद्यालय में ही उनके काटने का प्रबन्ध करना उचित होगा समय-समय पर इनकी स्वच्छता कराते रहना चाहिए। तथा
दांतों की स्वच्छता- दूषित दाँतों में पीड़ा होती है। यदि बालक के कई दाँत दूषित होते हैं और उनमें पीड़ा होती है तो वह उनसे भोजन चबाना छोड़ देता है, उससे भोजन का पर्याप्त और उपर्युक्त चर्वण नहीं हो पाता जिसके कारण अमाशय को इस अचर्वित भोजन को पचाने में कठिनाई पड़ती है और उसे पचाने में असमर्थ रहता है। परिणामतः भोजन पेट में पर्याप्त देर तक रहता है। जिससे वह सड़ने लगता है और गैस उत्पन्न होने लगती है जिससे अन्य प्रकार की पाचन सम्बन्धी उलझनें तथा पीड़ा आदि उत्पन्न हो जाती हैं।
दाँतों की सफाई के लिए अच्छे दन्त ब्रुश या दातुन का प्रयोग करना चाहिए। ब्रुश के साथ कोई भी अच्छा महीन दन्त पाउडर या दन्त क्रीम का प्रयोग उचित है।
हाथों की सफाई- हम दैनिक जीवन में अपने हाथों द्वारा ही अनेक कार्य करते हैं मतलब भोजन ग्रहण करना, लिखना, पूजा-अर्चना करना इत्यादि इत्यादि। अतः यह नितान्त आवश्यक है कि हमारे हाथ बिल्कुल स्वच्छ रहे। आधे से ज्यादा बीमारियाँ हाथों की गन्दगी के कारण ही होती हैं और शरीर में गन्दगी के कीटाणु जाने का एक माध्यम हाथ भी है। यह ध्यान रखना चाहिए कि खाना खाने से पूर्व व बाद में हाथों को अच्छी तरह से धोएँ । मल त्याग के पश्चात् भी हाथ को साबुन से साफ करना चाहिए ।
पैरों की स्वच्छता- शारीरिक अंगों में पैरों का विशेष महत्त्व है। पैर ही वे आधार हैं। जिस पर सम्पूर्ण शरीर का भार टिका हुआ है। इसी से गति सम्भव है। अतः पैरों की देखभाल अति आवश्यक है। फटी एड़ियों का तो खास ख्याल रखना चाहिए उन्हें ज्यादा साफ रखने की जरूरत होती है क्योंकि फटी एड़ियों में धूल मिट्टी भर जाती है। उन्हें रगड़कर साफ करके उन पर वैसलीन लगा लेनी चाहिए।
पैर के नाखूनों की कटाई नियमित रूप से करनी चाहिए। कभी भी नंगे पाँव नहीं रहना चाहिए।
जीभ की स्वच्छता – जिह्वा का भी हमारे जीवन में अत्यन्त महत्त्व है। एक छोटी-सी जीभ हमें अनेक प्रकार के स्वाद का परिचय देती है। व्यंजन का स्वाद जीभ से ही सम्भव है। गन्दी जीभ होने की पहचान यह है कि जीभ पर गन्दगी की एक मोटी परत जम जाती है जबकि साफ जीभ की पहचान उसकी लाली है। जीभ की गन्दगी को ‘जीभकच्छी’ से साफ करना चाहिए जिसे ‘टंगक्लीनर’ कहते हैं। जीभ पर जमी गन्दगी की मोटी परत रोगो को न्यौता देती है। बच्चों की जीभ को कपड़े से साफ करना चाहिए। बड़े लोग दातून या जीभी से जीभ साफ कर सकते हैं। इनके अभाव में अँगुलियों से भी जीभ साफ की जा सकती है।
पेट की स्वच्छता- पेट की स्वच्छता भी नितान्त आवश्यक है।
गले की स्वच्छता – गले की स्वच्छता नितान्त आवश्यक है। गले की अस्वच्छता एवं अस्वस्थता के परिणामस्वरूप गला वर्ण, गला तुण्डिका आदि रोग हो जाते हैं। अधिकांशतः जुकाम की स्थिति में गला दुखने लगता है। गर्दन की ग्रन्थियाँ सूज जाती हैं, गला लाल रंग का हो जाता है तथा उस पर सूजन आ जाती है। ऐसी स्थिति में गले के चारों ओर ठण्डी या गर्म रुई बाँधना चाहिए। गुनगुने पानी में नमक डालकर कुल्ले करने चाहिए तथा थ्रोट पेन्ट का प्रयोग करना चाहिए।
नेत्रों की स्वच्छता- नेत्र शरीर के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। अध्यापक का कर्त्तव्य है कि बालकों को नेत्र रक्षा की शिक्षा दे और नेत्रों को स्वच्छ रखने का आदेश दे। नेत्र रक्षा के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य है-
- नेत्रों को धूल और मैल से अधिक हानि होती है।
- छोटे बालकों के पढ़ने के स्थान पर प्रकाश का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। पढ़ते समय प्रकाश बायीं ओर से ही आना चाहिए जिससे कि बालकों की पुस्तकों पर परछाई न पढ़े और उनके नेत्रों को चौंधा न लगे।