जहाँ वैश्वीकरण के कुछ लाभ हैं, वहीं इसकी कुछ हानियाँ या नकारात्मक प्रभाव भी हैं जो निम्नलिखित हैं-
- भारत में अंग्रेजी का इतना प्रयोग होने लगा है कि अन्य भाषाओं का अस्तित्व ही समाप्त हो रहा है। यहाँ तक कि लोग अपनी मातृभाषा से भी अनभिज्ञ होते जा रहे हैं।
- दूरस्थ शिक्षा का प्रचलन बढ़ा है जिससे शिक्षा के व्यापारीकरण को बल मिला है व शिक्षा एक बाजारी वस्तु बन गई है।
- इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन के कारण बच्चों का सांस्कृतिक विकास बाधित हो रहा है।
- शिक्षक व छात्र का सम्बन्ध भी समाप्त होता जा रहा है।
- आज वैश्वीकरण को बढ़ावा देने हेतु आर्थिक उदारीकरण के नाम पर सक्षम देशों द्वारा भारत जैसे देश को बाजार में तब्दील किया जा रहा है। जिसकी वजह से हमारे देश में कुटीर व लघु उद्योग समाप्त होते जा रहे हैं। स्वावलम्बन घट रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है, हमारी स्वदेशी कम्पनियाँ विदेशी कम्पनियों के पैसे व ताकत के आगे आत्मसमर्पण कर रही है आज देश में बड़े कारखानों की बढ़ती संख्या ने स्वरोजगारियों को मजदूर बना दिया और हमारे गाँवों की आबादी रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन कर रही है।
- विकसित देश भी उदारीकरण की आड़ में न केवल अपना बोझ हम पर थोप रहे हैं अपितु वे अपनी रिसर्च के लिए भी यहाँ नागरिकों व परिस्थितियों को चुन रहे हैं, साथ ही उन्होंने देश को अनेक प्रकार की अखाद्य व गैर जरूरी वस्तुओं का कूड़ाघर बना दिया।
- वैश्वीकरण के कारण हमारा पर्यावरण लगातार विषैला होता जा रहा है। विकास के नाम पर प्रकृति का अंधाधुंध शोषण व दोहन किया जा रहा है, बड़े-बड़े मॉल एवं उद्योग-धन्धे बनाये जा रहे हैं, जिसके कारण हमारा पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है।
- वैश्वीकरण के कारण आज प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक धन के अधीन होने के कारण शिक्षा व्यवसाय बन गई है। देश में प्रबन्धन संस्थानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इन संस्थानों से निकलने वाले 5 प्रतिशत युवा भी स्वरोजगार की तरफ उन्मुख नहीं होते वरन् बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में अपनी सेवाऐं उपलब्ध कराते हैं।
- वैश्वीकरण के कारण बेरोजगारी, निम्न मजदूरी, कार्य की अनिश्चितता पर भी प्रभाव पड़ता जा रहा है।
- वैश्वीकरण के कारण पाश्चात्य संस्कृति और परम्परा हमारी भारतीय संस्कृति में पैर पसार रही है, जिसकी वजह से आज हमारी भारतीय संस्कृति के मूल्यों में गिरावट आती जा रही है। आज संयुक्त परिवार की जगह एकाकी परिवार, अरेंज विवाह की जगह प्रेम विवाह होने लगे हैं। आज पाश्चात्य संस्कृति हमारे ऊपर इतनी हावी हो चुकी है कि अपने माता-पिता का भी सम्मान नहीं करते हैं।
- भूमिहीन खेत मजदूरों की संख्या बढ़ रही है और किसानों के लिए खेती आज घाटे का सौदा बन गई है। कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आर्थिक गतिविधियों के सेवा क्षेत्र के हावी होने से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि क्षेत्र की भागीदारी वर्ष दर वर्ष कम होती जा रही है। कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता न देने का ही परिणाम है कि अमेरिका की आर्थिक मंदी ने हमारे देश में हलचल मचा दी है। भूमण्डलीकरण के नाम पर हमारा पर्यावरण निरन्तर विषैला हो रहा है। गंगा जैसी जीवनदायिनी नदियाँ भी वैश्वीकरण का शिकार हो रही हैं। जंगल उजड़ते जा रहे हैं और जानवर विलुप्त हो रहे हैं।
- वैश्वीकरण के कारण आज शिक्षा को भी आर्थिक दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है। शिक्षा एक बाजार की वस्तु बनकर रह गई है जिसे उत्पादकता में जोड़कर रखा जाने लगा है देश के भावी नागरिकों (विद्यार्थियों) को संख्या व उत्पाद के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है। शिक्षा में आध्यात्मिक व नैतिक प्रक्रिया के स्थान पर व्यावसायिक प्रक्रिया बन गई है। शिक्षा के उद्देश्यों में भौतिक समृद्धि को सबसे ऊपर रखा जाने लगा है। पाठ्यक्रम में केवल विज्ञान व तकनीकी का समावेश है तथा आध्यात्म, धर्म व नैतिकता का स्थान नाममात्र भी नहीं है। शिक्षक शिक्षार्थी सम्बन्ध में औपचारिकता का समावेश हो गया है सेवा के रूप में व धर्म का कार्य माना जाने वाला शिक्षण कार्य एक व्यवसाय व जीविकोपार्जन का साधन बनकर रह गया है।
इन दुष्प्रभावों (हानियों) के बावजूद वैश्वीकरण के महत्त्व से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वैश्वीकरण के कारण ही विश्व को एक बाजार के रूप में देखा जाता है, परन्तु आवश्यकता यह है कि इसे एक परिवार के रूप में देखा जाये। एक ऐसा परिवार, जहाँ संस्कृतियों में संवाद हो, धर्मों में सद्भाव हो, ज्ञान का प्रकाश हो, आर्थिक सहयोग हो। हमें ऐसे ही एक नये विश्व का निर्माण करना है।