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विद्यालय भवन में सूर्य प्रकाश की व्यवस्था B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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सूर्य प्रकाश जीवन के लिए एक नितान्त आवश्यक तत्त्व है। बिना सूर्य प्रकाश के किसी प्रकार का जीवन सम्भव ही नहीं है चाहे वह पशु-पक्षी या पेड़-पौधों ही क्यों न हो।

जीवन-दान के अतिरिक्त सूर्य प्रकाश जीवाणुओं को मारने का भी काम करता है। सूर्य का प्रकाश मानव-चर्म में जीवाणु नाशक शक्ति की वृद्धि करता है और रक्त में श्वेत कर्णा को शक्ति प्रदान कर उन्हें प्रतिरोधी शक्ति प्रदान करता है। इससे रक्त में औषधि या पौष्टिक भोजन का लोहा, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयोडीन आदि तत्त्वों की भी वृद्धि होती है। यह पाचन शक्ति तथा रक्त प्रवाह की भी वृद्धि करता है जिससे माँसपेशियाँ समुचित रूप से विकसित होती हैं।

शरीर पर पड़ा सूर्य का प्रकाश शरीर में विटामिन ‘डी’ उत्पन्न करता है जो कि दाँत तथा अस्थियों के निर्माण के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस के शरीर में उपयोग हेतु नितान्त आवश्यक है। यह क्षय तथा गठिया के रोगों का उपचार भी करता है।

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सूर्य के प्रकाश की कमी विद्यालय के बच्चों के निकट दृष्टि दोष तथा एनीमिया के रोग का कारण बन जाती है। कुछ रोगों में जैसे- सूखा रोग, गर्दन की ग्रन्थियों की सूजन, कोड़, फुफ्फुसों के क्षय रोग और सामान्य अवस्था में अप्राकृतिक सूर्य प्रकाश उपचार का काम करता है। यह अपौष्टिक भोजन की कमी को दूर करता है तथा बीमारी के बाद शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में सहायक होता है।

निश्चय ही विद्यालय की सभी कक्षाओं और सभी स्तरों से बच्चों के लिए सूर्य के प्रकाश का उपयोग करना चाहिए। खेलकूद तथा व्यायाम खुले मैदान में कराना चाहिए जहाँ बच्चों को पर्याप्त सूर्य का प्रकाश तथा ताजी शुद्ध वायु प्राप्त हो सके।

कक्षा में पर्याप्त सूर्य का प्रकाश आना चाहिए और इसके लिए कक्ष में पर्याप्त द्वार तथा खिड़कियाँ होनी चाहिए खिड़कियों की रचना इस रूप में व्यवस्थित होनी चाहिए कि प्रत्येक डेस्क पर पर्याप्त तथा समान प्रकाश पहुँच सके। खिड़कियाँ छत की ओर लम्बी होनी चाहिए। फर्श पर खिड़की की ऊँचाई इतनी होनी चाहिए कि प्रकाश रश्मियाँ बालक की आँख की सीध में पड़े ।

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बालक जब डेस्क पर लिखने के लिए बैठता है तो पीछे से आता प्रकाश उसके शरीर में अवरुद्ध हो जाता है। जहाँ तक सम्भव हो, प्रकाश विद्यार्थी के बायीं ओर से आना चाहिए। दायीं ओर से आने वाले प्रकाश में एक यही दोष है कि कलम के आगे लिखते समय, हाथ की परछाई पड़ जाती है। विद्यार्थी के एकदम सामने से आने वाला प्रकाश तो सबसे निकृष्ट कोटि का है। यह आँखों में चौंध उत्पन्न करता है और आँखों के लिए हानिकारक होता है। पीछे से आने वाला प्रकाश विद्यार्थी की आँखों के सामने छाया उपस्थित कर देता है, परन्तु यह भी उपयुक्त नहीं है। अतः खिड़कियाँ वायें हाथ पर होनी चाहिए और एक खिड़की डेस्कों की प्रथम पंक्ति में लगभग सामने होनी चाहिए’ कक्ष का आकार इस रूप में संयोजित होना चाहिए कि खिड़कियों में से आने वाला प्रकाश कक्ष के दूर से दूर कोने में भी समान रूप से पहुँच सके ।

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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