विद्यार्थियों की भाषाई पृष्ठभूमि (Language Backgrounds of the Students)

अभी तक की चर्चा से हमने यह जाना की बहुभाषिकता एक सामान्य सत्य है। यह कोई समस्या नहीं जैसा की कई शिक्षक सोचते है बल्कि यह एक संसाधन है। आप जनते है कि शिक्षक का कार्य नैसर्गिक भाषाई- परिस्थितिकी को संरक्षित करना है व पोषित करना है ना कि उसको नष्ट करना। इस हेतु शिक्षकों को विभिन्न भाषाओं के प्रति सम, संवेदनशील व ग्रहणशील होना चाहिए। पुनः हम ध्यान दे कि हमारे विद्यालय में विभिन्न भाषायी और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से विद्यार्थी आते हैं।

और जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चों की भाषा और संस्कृति को समझे बिना हम उनके लिए उचित शिक्षा की व्यवस्था नहीं कर सकते है क्योकि उनकी परिस्थिति में वह शिक्षा प्रासंगिक नहीं हो सकती है। कई कारणों में शिक्षा की अप्रासंगिकता भी एक कारण है कि प्रारम्भिक शिक्षा का मुफ्त व अनिवार्य होते हुए भी कई अभिवावक अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजते। जैसा कि हम शिक्षक जमीनी स्तर पर कार्य करते है यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम विद्यालय द्वारा प्रदत्त शिक्षा की सार्थकता बनाये रखे। और यह तभी सम्भव है जब हम अपने विद्यार्थियों की भाषायी और संस्कृतिक पृष्ठभूमि से अच्छी तरह से वाकिफ हो।

हम पिछली इकाइयों में चर्चा कर चुके है कि भाषा शिक्षा का माध्यम व शिक्षा का अंग है; और बच्चों की प्रथम भाषा उनकी समझ के लिए सबसे उत्तम माध्यम है तो कहीं न कहीं यह बात तार्किक है कि शिक्षकों को बच्चों के भाषाई पृष्ठभूमि य प्रथम भाषा को समझना जरूरी है। दूसरी एक बात और महत्वपूर्ण है कि सिर्फ हम उदारता और दया भाव से बच्चों की मातृभाषा मे कक्षाकक्ष-अंतर्क्रिया को बढ़ावा दे तो ऐसा सोचना मात्र ही गलत है। यदि आप शिक्षा में समता की बात करते हैं। यदि आप एक समेकित शिक्षा व्यवस्था में विश्वास करते हैं तो सबको समान शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए हमको उनकी भाषाई अधिकारों का ध्यान रखना ही पड़ेगा।

कक्षा में भाषाई विभिन्नता को ध्यान रखने फायदा सिर्फ विद्यार्थियों को ही नहीं होता है बल्कि हम शिक्षकों को भी होता है। शिक्षक अपने बच्चों के पृष्ठभूमि के बारे में जितना अधिक जानते हैं उतना उनका काम आसान हो जाता है। कई दशकों से होते आ रहे शैक्षिक शोधों से यह बात स्वयं सिद्ध सी हो चुकी है कि बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि पर उनकी भाषाई, सांस्कृतिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि का असर पढ़ता है। तब हम बच्चों की पृष्ठभूमि के विषय में गम्भीरता से अध्ययन क्यों नहीं करते?

आपने शिक्षा-साहित्य में पढ़ा होगा कि उत्तम शिक्षक वह होता है जो बच्चों को अभिप्रेरित करता है। आपने अभिप्रेणा और अधिगम के अन्योन्याश्रितता का भी अध्ययन किया ही होगा। जब हम जानते हैं कि अभिप्रेरणा के बिना अधिगम संभव नहीं है तो शिक्षक का मुख्य कार्य विद्यार्थियों को प्रेरित करना हो जाता है।

अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए और अपने विषय को रूचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आपको पता होना चाहिए कि वे कौन सी बातें है जो विद्यार्थियों को प्रेरित करती है? इस प्रश्न के उत्तर के लिए आपको इसके आधार प्रश्न का उत्तर भी खोजना होगा। वह यह कि विद्यार्थियों के विद्यालय में आने को क्या और कौन सी बात प्रेरित करती है? इस प्रश्न के उत्तर से न केवल शिक्षकों का शिक्षण रुचिपूर्ण होता है अपितु विद्यालय द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा प्रासंगिक भी होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चों के विद्यालय आने की अभिप्रेरणा में अभिभावकों द्वारा विद्यालय भेजने की अभिप्रेरणा व उनकी अपेक्षाएं भी संलिप्त रहती है। इनका ज्ञान शिक्षकों को होना अनिवार्य है। आप सोच रहे होंगे कि शिक्षक अभिभावकों की अपेक्षाओं की जानने के कार्य को कैसे कर सकते हैं? इसके लिए संवाद सबसे उचित माध्यम है। अभिभावकों से संवाद स्थापित करके आप न केवल उनकी अपेक्षाओं को जानने लगते हैं बल्कि आप अपने विद्यार्थियों के भाषाई पृष्ठभूमि भी समझ जाते हैं; जो कक्षाकक्ष अंतर्क्रिया को प्रभावी बनाने के लिए जरूरी है।

हमारे आसपास अप्रशिक्षित शिक्षकों की कमी नहीं है कई विद्यालयों में प्रथम डिग्री (B.A./B.Sc ) प्राप्त लोग पढ़ा रहे हैं। जिन्होंने शिक्षा में कोई उपाधि (जैसे B.Ed.) प्राप्त नहीं की है। इस तत्व से एक बात सामने आती है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी कक्षा में कोई भी विषय पढ़ा सकता है। परन्तु शिक्षा का उद्देश्य पूरा होने की गारंटी तब होती है जब आप बच्चों के सर्वांगीण विकास को प्रोत्साहित करते हैं। यह तभी संभव है जब आप बच्चों की पृष्ठभूमि को समझते हो।

विद्यार्थियों के पारिवारिक, सामाजिक- सांस्कृतिक मांनसिक आदि परिप्रेक्ष्यों को समझने की पहली शर्त विद्यार्थियों की भाषाई पृष्ठभूमि को समझना है। विद्यार्थियों की पृष्ठभूमि की समझ ही आपको संपूर्ण(Complete) शिक्षक बनाती है। बच्चों की भाषाई व अन्य प्रकार पृष्ठभूमियों को समझने के लिए कौन-कौन सी विधियां, प्रविधियां और रणनीतियां अपनाई जा सकती है अब हम इसकी चर्चा करते है।

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  • प्रथम रणनीति है संवाद। बच्चों के साथ अनौपचारिक संवाद स्थापित करके शिक्षक बच्चों के भाषाई पृष्ठभूमि को समझ सकते हैं। साथ ही साथ उनमें भाषा के विकास के स्तर को भी समझ सकते हैं। तदनुरूप वे अपनी कक्षाकक्ष अंतक्रिया की योजना तैयार कर सकते हैं।
  • द्वितीय पद्धति अवलोकन य निरीक्षण है। अवलोकन और परीक्षण के द्वारा शिक्षक बच्चों के ना केवल भाषाई पृष्ठभूमि को समझ सकते हैं बल्कि उनके सामाजिक संबंध, समूह गतिशीलता आदि का भी पता लगा सकते हैं।
  • आपने देखा होगा कि कुछ बच्चे अंतर्मुखी प्रकार के होते हैं और कुछ बहिर्मुखी प्रकार के होते हैं। अंतर्मुखी प्रकार के बच्चे हमेशा शांत रहना पसंद करते हैं। ऐसे में संवाद स्थापित करने की समस्या उतपन्न हो जाती है और भाषाई पृष्ठभूमि के समझना कठिन हो जाता है। शिक्षक को संवाद पर जमी हुई बर्फ की परत को तोड़ना होता है। इसके लिए एक रणनीति अपनाई जा सकती है कि हम खेलों का आयोजन करें। विशेष रूप से हम स्थानीय खेलों का आयोजन करें और उन खेलों में बच्चों की समूह अंतरक्रिया का अवलोकन करें। क्योंकि स्थानीय खेलों में बच्चे बड़ा ही सहज और प्राकृतिक रूप से व्यवहार करते हैं। अगर हम कुछ मानक खेलों का आयोजन करते हैं, जो कि जिला य राज्य के स्तर पर खेले जाते हैं तो अच्छा होगा कि शिक्षक भी उन खेलों में सहभागी बने; और इस प्रकार सहभागी अवलोकन करने से शिक्षक बच्चों की भाषाई पृष्ठभूमि के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  • भाषा परीक्षण एक ऐसी विधि है जिससे बच्चों की भाषाई पृष्ठभूमि को विस्वसनीय तरीके से समझा जा सकता है। यदि बच्चों की प्रथम भाषा विद्यालय भाषा से अलग है और बच्चों की प्रथम भाषा लिखित भाषा भी है तो शिक्षक मानक परीक्षणों का भी प्रयोग कर सकते हैं। दोनों (प्रथम और विद्यालयी) भाषाओं के लिए इन परीक्षणों का प्रयोग किया जा सकता है।
  • आपके विद्यालय में कक्षा 6, 9 व 11 कई स्तरों पर कुछ विद्यार्थी सीधे नामांकन प्राप्त करते होंगे। इस प्रकार वे पूर्व की कक्षाएं कहीं दूसरी जगह से उत्तीर्ण करके आये होंगे। ऐसे में विद्यार्थियों की भाषा व शैक्षिक पृष्ठभूमि जानने के लिए आप बच्चों के विद्यालयी दस्तावेजों का विश्लेषण कर सकते हैं। इसके अलावा उनाके पूर्व के विद्यालय की साख और प्रोफाइल के आधार पर भी आप कुछ अंदाजा लगा सकते हैं।
  • बच्चों की रुचियों को जानने के लिए हम एक सर्वेक्षण भी कर सकते हैं जिसमें बच्चे कुछ प्रश्नों के लिखित जवाब दें। जैसे कि मुझे क्रिकेट खेलना पसंद है। यह परीक्षण आविष्कारणी (Inventory) के प्रकार का हो सकता है, जो शिक्षक संदर्भ विशेष को ध्यान में रखते हुए स्वयं तैयार कर सकते हैं। इससे मनोभाषिक पृष्ठभूमि के अलावा अन्य व्यक्तित्व से संबंधित जानकारियां भी प्राप्त की जा सकती हैं।
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