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विकास को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Influencing Development B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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शैशवावस्था एक महत्वपूर्ण अवधि होती है जब एक बच्चा जन्म लेता है और उसकी परवरिश शुरू होती है। यह वह समय होता है जब एक बच्चे के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास की आधारशिला रखी जाती है। इस लेख में हम शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा करेंगे। शैशवावस्था में शारीरिक विकास, मानसिक विकास और सामाजिक विकास की विशेषताएं होती हैं। इस अवधि में बच्चे को खेलने, गाने और संगठन में हिस्सा लेने का मौका देने से उनका संपूर्ण विकास होता है।

विकास को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Influencing Development B.Ed Notes

विकास को प्रभावित करने वाले कारकों या तत्वों को अग्र दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

आनुवांशिक कारक (Hereditary Factors)

आनुवंशिक कारकों के अंतर्गत शारीरिक संरचना, आकार, प्रकार तथा जन्म से प्राप्त बुद्धि का बच्चों के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। आनुवंशिक गुणों के लिए पीटरसन ने कहा है – ”व्यक्ति को अपने पूर्वजों के गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिलते हैं, इसे आनुवंशिकता कहते हैं।”

  • शारीरिक संरचना (Physical Structure) – शारीरिक संरचना के अन्तर्गत शरीर की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, भार, मुख (चेहरा) आदि आते हैं। जो लोग शरीर से लम्बे, बलिष्ठ, सुन्दर तथा आकर्षक होते हैं वे प्राय: खेलकूद, व्यायाम, जिमनास्टिक, मॉडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में सफल रहते हैं। इसी तरह बहुत नोट या मोटे लोग भी अपने लिए उपयुक्त व्यवसाय का चयन कर अपना विकास करते हैं।
  • लिंग भेद (Sex Differences) – शारीरिक और मानसिक विकास पर लिंग भेद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। लड़कियों का शारीरिक विकास लड़कों की अपेक्षा शीघ्र होता है और वे शीघ्र परिपक्व हो जाती हैं। बालिकाओं का मानसिक विकास बालकों की अपेक्षा शीघ्र होता है।
  • संवेगात्मक विशेषताएँ (Emotional Characteristics) – प्रत्येक व्यक्ति में मूल प्रवृत्तियाँ और संवेग जन्म से ही अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। उदाहरण के रूप में कुछ बालक जन्म से ही क्रोधी होते हैं तथा कुछ जन्म से ही विनम्र तथा सहृदय होते हैं। दोनों के व्यक्तित्व के विकास में उनकी मूल प्रवृत्तियों का प्रभाव देखने को मिलता है।
  • बुद्धि (Intelligence) – बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में बुद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है। अनुभव के आधार पर यह पाया गया है कि अधिक बुद्धि वाले बालकों का विकास तीव्र गति से होता है
  • आन्तरिक संरचना (Internal Structure) – शरीर की बाह्य संरचना के साथ-साथ इतनी आन्तरिक संरचना भी व्यक्ति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अन्तर्गत हड्डियों की बनावट, मस्तिष्क की संरचना एवं यकृत, अग्न्याशय, हृदय आदि की क्रिया प्रणाली का विशेष योगदान रहता है। ये समस्त आन्तरिक अंग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास के लिए उत्तरदायी होते हैं।
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वातावरण (Environment)

आनुवांशिक कारकों के बाद कई पर्यावरणीय कारक व्यक्ति के विकास में मदद करते हैं। जहां तक शारीरिक विकास की बात है तो इस पर पर्यावरण का प्रभाव बहुत कम पड़ता है, लेकिन मानसिक विकास पर पर्यावरण का काफी प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण का यह प्रभाव बचपन से लेकर बुढ़ापे और जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहता है। विकास पर पर्यावरण के प्रभाव के संबंध में एक तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है – पर्यावरण मानव व्यक्तित्व के विकास में कोई मौलिक योगदान नहीं देता है, परंतु आनुवंशिकता के माध्यम से उसे प्राप्त होने वाले गुणों एवं विशेषताओं को पूर्ण रूप से विकसित करने में यह बहुत सहायक होता है। ऐसा होता है।

देखा जाता है कि व्यक्ति के कई ऐसे गुण खोजे जाते हैं जो उसे सफल बनाते हैं। जीवन के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि प्राकृतिक वातावरण एवं मानक न मिलें, क्योंकि श्रमिक अविकसित रह जाते हैं।

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इस प्रकार वातावरण निम्न कारकों के माध्यम से मानव विकास को प्रभावित करता है-

  • जीवन की आवश्यक सुविधाएं (Necessary Facilities of Life) – मनुष्य के शारीरिक एवं सामाजिक जीवन से संबंधित मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति उसके विकास में बहुत सहायक होती है जैसे भोजन, वस्त्र, मकान, विद्यालय, पौष्टिक एवं संतुलित भोजन, शुद्ध वायु एवं प्रकाश आदि कुछ ऐसी सुविधाएं हैं जो उसके विकास के लिए आवश्यक हैं। व्यक्ति का समुचित विकास. बहुत ज़रूरी। ये सुविधाएँ जितनी अच्छी होंगी, मानव विकास उतना ही बेहतर होगा। शिक्षा के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि किस उम्र के बच्चों को क्या सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।
  • समाज और संस्कृति (Society and Culture)- विकास पर समाज और संस्कृति का भी प्रभाव पड़ता है। बालक के विकास पर उसके समाज तथा भौतिक एवं अभौतिक दोनों प्रकार की संस्कृतियों का प्रभाव पड़ता है। समाज में प्रचलित रीति-रिवाज, मान्यताएँ और नैतिक मूल्य विकास की गति और दिशा का निर्धारण करते हैं। सामाजिक संस्थाएँ भी अनेक प्रकार के कार्यक्रमों के द्वारा व्यक्ति के विकास में सहयोग प्रदान करती हैं।
  • पारिवारिक पृष्ठभूमि (Family Background) – पारिवारिक वातावरण और परिवार का स्थान बच्चे के विकास को बहुत प्रभावित करता है। यदि परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध और खुले विचारों वाला होगा तो उसके बच्चे भी स्वस्थ और खुले विचारों वाले होंगे। परिवार में बच्चे का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। परिवार में दूसरे, तीसरे और चौथे बच्चे का विकास पहले बच्चे की तुलना में तेजी से होता है क्योंकि बाद में पैदा होने वाले बच्चों को विकसित वातावरण मिलता है और उन्हें अपने बड़े भाई-बहनों की नकल करने का अधिक अवसर मिलता है।
  • रोग तथा चोट (Diseases and Injuries) – बालक के विकास को रोग और चोट भी प्रभावित करते हैं। किसी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक चोट बालक के विकास को रोक देती है या उचित दिशा में विकास नहीं होने देती। विषैली दवाओं के प्रभाव से भी विकास रुक जाता है। शैशवावस्था या बाल्यावस्था में गंभीर रोग हो जाने पर कभी-कभी उसका प्रभाव बालक के विकास को अवरुद्ध कर देता है।
  • विद्यालय (School) – बालक के विकास में विद्यालय के वातावरण, अध्यापक तथा शिक्षा के साधनों की निर्णायक भूमिका होती है। जिन विद्यालयों में कक्षा-शिक्षण के साथ-साथ पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाता है वहाँ बालकों को अपनी प्रतिभा के विकास के अवसर मिलते हैं। जिन विद्यालयों में बालकों के लिए निर्देशन परामर्श सेवाएँ एवं स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध होती हैं वहाँ के बालकों को अपनी समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता मिलती है। अध्यापकों का व्यवहार भी बालकों के विकास पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालता है।
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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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