महिला सशक्तीकरण से क्या तात्पर्य है? उसकी आवश्यकता एवं महत्व की विवेचना करें।

महिला सशक्तीकरण से तात्पर्य है- महिलाओं को सशक्त बनाना के अन्तर्गत निम्नांकित सशक्तीकरण आते हैं-

  1. पारिवारिक सशक्तीकरण
  2. सामाजिक सशक्तीकरण 3. सांस्कृतिक सशक्तीकरण
  3. आर्थिक सशक्तीकरण
  4. राजनैतिक सशक्तीकरण
  5. धार्मिक सशक्तीकरण
  6. कार्य विषयी सशक्तीकरण
  7. मनोवैज्ञानिक एवं सांवेगिक सशक्तीकरण
  1. पारिवारिक सशक्तीकरण पारिवारिक सशक्तीकरण से तात्पर्य है घर में बालिकाओं तथा महिलाओं से बिना किसी भेदभाव के व्यवहार करना । पारिवारिक सशक्तीकरण के अन्तर्गत आता है—
  1. विवेकपूर्ण निर्णय लेने हेतु प्रोत्साहन।
  2. बालिकाओं के पालन-पोषण, रहन-सहन एवं शिक्षा का समुचित प्रबन्धन
  3. आत्म-प्रकाशन के अवसर प्रदान करना।
  4. समानता और स्वतन्त्रता का समुचित उपयोग।
  5. आर्थिक विषयों पर अधिकार।
  6. मनपसन्द शिक्षा तथा कार्यक्षेत्र चयनित करना।
  7. महत्त्वपूर्ण निर्णयों में हस्तक्षेप या भागीदारी।
  8. आदर तथा सम्मान।
  9. पारिवारिक क्रियाकलापों तथा उत्सवों में महत्त्व।
  10. लिंग के आधार पर भेदभाव, उत्पीड़न तथा हिंसा आदि का न होना।
  11. मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करना ।

परिवार का किसी भी बालक और बालिका के जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यही वह स्थल है जहाँ प्रेम और भय तथा ईर्ष्या का पाठ बालक पढ़ता है। परिवार में यदि लिंगभेद है जैसे- लड़कों के खान-पान, सहन-सहन, शिक्षा आदि की उत्तम व्यवस्थ होना, लड़कियों की उपेक्षा तो यह भेदभाव पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होता रहता है। महिला सशक्तीकरण के लिए परिवार से ही उनको सशक्त बनाना होगा, क्योंकि हमारे परिवार में ही लड़की के जन्म पर मायूसी और लड़के के जन्म पर ढोल नगाड़े बजाते हैं, बहू को जिन्दा जला दिया जाता है, दहेज लिया जाता है, स्त्रियों को आर्थिक अधिकार प्रदान नहीं किय जाते हैं, उनको मारना-पीटना, गाली-गलौज करना लोग अपना अधिकार समझते हैं। ऐसे परिस्थितियों में महिला सशक्तीकरण का प्रारम्भ पारिवारिक वातावरण से ही किया जाना चाहिए।

  1. सामाजिक सशक्तीकरण- कुछ परिवारों में बालक-बालिका का भेदभाव अर्थात लिंगीय भेदभाव नहीं है परन्तु हमारा समाज जब तक महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए आगे नहीं आयेगा तब तक महिला सशक्तीकरण का कार्य पूर्ण नहीं हो सकेगा। महिलाओं को या बालिकाओं को अपने सम्पूर्ण विकास और उन्नति के लिए समाज के सम्पर्क में आना ही पड़ेगा क्यूंकी आज भी हमारा सामाजिक वातावरण संकीर्ण है जिससे ये समाज में कदापि सुरक्षित नहीं हैं। अतः महिला सशक्तीकरण के अन्तर्गत महिलाओं का सामाजिक सशक्तीकरण आता है।
  2. सांस्कृतिक सशक्तीकरण – हमारी संस्कृति अत्यधिक गौरवमयी रही है परन्तु इसमें कुछ कुप्रथायें, रूढ़ियों और अन्धविश्वासों के आ जाने से महिलाओं मे शोषण, सांस्कृतिक मान्यताओं के नाम पर हो रहा है। ऐसे में जड़ तथा अप्रगतिशील सांस्कृतिक तत्त्वों को ही समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए क्योंकि सांस्कृतिक संरक्षण और हस्तान्तरण में वे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  3. आर्थिक सशक्तीकरण- महिलाओं को न तो पिता की ओर से और न ही पति की ओर से आर्थिक अधिकार प्राप्त होते हैं, जिससे वे अपने भरण-पोषण और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। महिलाओं की सशक्त छवि तभी वास्तविक अर्थ में प्रस्तुत की जा सकती है जब वे आर्थिक रूप से सशक्त और सक्षम हों।
  4. राजनैतिक सशक्तीकरण – प्रजातन्त्र में स्त्री तथा पुरुष दोनों को ही वोट की ताकत प्राप्त है। ऐसे में राजनैतिक परिदृश्य में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है महिलाओं की पिछड़ी स्थिति को देखते हुए उनको राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए आरक्षण प्रदान किया गया है, जिससे वे सशक्त बन सकें ।
  5. धार्मिक सशक्तीकरण- धर्म अपने मूल स्वरूप में मानवता और सत्कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं परन्तु धार्मिक क्रियाकलापों में महिलाओं के साथ विभेदात्मक व्यवहार किया जाता है और कई धार्मिक स्थलों पर तो महिलाओं के आने-जाने की भी मनाही है परन्तु धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से महिलाओं को सशक्त बनाया जाना चाहिए क्योंकि धार्मिक क्रियाकलापों, दया, त्याग, करुणा इत्यादि की प्रतिमूर्ति के रूप में उन्हें जाना जाता है।

इस प्रकार महिला सशक्तीकरण से तात्पर्य प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को मजबूत और स्वावलम्बी बनाने से है ।

महिला सशक्तीकरण आवश्यकता तथा महत्त्व (Women Empowerment – Need and Importance )

महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और इसके महत्त्व का अनुभव प्रत्येक क्षेत्र में किया जा रहा है। महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और महत्व का रेखांकन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा रहा है –

  1. लिंगीय भेदभावों में कमी हेतु- महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और महत्त्व लिंगीय भेदभावों में कमी लाने हेतु अत्यधिक है। वर्तमान समाज में लिंगभेद चरम सीमा पर है, जिसके कारण समाज में तमाम प्रकार की कुप्रवृत्तियाँ और अपराधों का जन्म हो रहा है। घर तथा बाहर चाहे विद्यालय हो, सार्वजनिक स्थल हो या कार्यस्थल, लिंगीय भेदभाव देखने को मिल जाते हैं, क्योंकि स्त्रियों को प्रारम्भ से ही पुरुषों के नियन्त्रण में रख जाता है, जिससे स्त्रियों में अपनी शक्तियों के प्रति हीनता का भाव आ जाता है। आत्मविश्वास की कमी के कारण स्त्रियाँ सदैव पुरुषों के पीछे ही रहती हैं और पुरुष में श्रेष्ठता का भाव आ जाता है। यह क्रम पीढ़ी-दर-पीढ़ी यों ही चलता रहता है और पुरुषों के साथ स्त्रियों भी लिंगीय भेदभावों को जन्म देती हैं।
  2. सभ्य समाज हेतु– महिलाओं का सशक्तीकरण सभ्य समाज के निर्माण के लिए अत्यावश्यक है महिलाओं का सशक्तीकरण उन्हें अधिक कर्तव्यनिष्ठ, कुशल तथा जवाबदेह बनाता है । सशक्त महिलाओं के द्वारा घर तथा बाहर की जिम्मेदारियों का निर्वहन सफलतापूर्वक किया जाता है सशक्त महिलायें अपनी सन्तानों का अच्छी प्रकार से पालन-पोषण करती हैं, जिससे स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों में कमी आती है जिससे सभ्य समाज का निर्माण होता है।
  3. व्यक्तिगत विकास से राष्ट्रीय विकास हेतु – महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उनकी शिक्षा पर बल दिया जाता है, जीवन दक्षता का विकास किया जाता है तथा व्यावसायिक कौशल प्रदान किया जाता है। इस प्रकार महिलायें सशक्त और स्वावलम्बी बनकर अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं और अभिरुचियों का विकास करती हैं, परन्तु यह उन्नति व्यक्तिगत होने के साथ-साथ हमारे समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान देती है। मानवीय संसाधन प्रमुख संसाधन हैं, क्योंकि मनुष्य के बुद्धि-बल से ही अन्य संसाधनों का प्रयोग किया जाना सम्भव है और महिला सशक्तीकरण के द्वारा अमूल्य संसाधन के रूप में महिलाओं में कौशल तथा दक्षता का विकास किया जाता है। शिक्षित और सशक्त स्त्री अपनी देश की उन्नति में इस प्रकार योगदान देती है-
    • महिला ही माता के रूप में बालक की प्रथम शिक्षिका होती है। अतः सशक्त महिला एक आदर्श शिक्षिका के रूप में भी देश की उन्नति में योगदान देती है।
    • महिलायें विविध क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं और अपनी सूझ-बूझ तथा प्रबन्धन क्षमता से अच्छा कार्य कर रही हैं जिससे देश की उन्नति हो रही है ।
  1. सांस्कृतिक संरक्षण हेतु– पीढ़ी-दर-पीढ़ी सांस्कृतिक संरक्षण में महिलायें महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती आई हैं। यदि महिलायें सशक्त होंगी तो वे अच्छी परम्पराओं और संस्कृति के सकारात्मक तत्वों को आने वाली पीढ़ियों के लिए विकसित कर हस्तान्तरित काँगी, जिससे सांस्कृतिक संरक्षण के कार्य द्वारा सांस्कृतिक गौरव में भी वृद्धि होगी।
  2. पारिवारिक सुख-शान्ति हेतु– महिलाओं के सशक्तीकरण के द्वारा पारिवारिक मुख-शान्ति में भी योगदान प्राप्त होता है, क्योंकि जिस परिवार में स्त्री-पुरुष दोनों सक्षम, शिक्षित तथा स्वावलम्बी हैं, वहाँ आपसी सहमति होगी जिससे सुख-शान्ति आयेगी। सशक्त महिला पारिवारिक आर्थिक दायित्वों में भी हाथ बँटायेगी, जिससे बच्चों की शिक्षा, पारिवारिक स्वास्थ्य की दशा अच्छी होगी। इस प्रकार पारिवारिक सुख-शान्ति के लिए महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता अत्यधिक है।

इस प्रकार विविध क्षेत्रों और सन्दर्भों में महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता और महत्त्व है तथा इस क्षेत्र में तमाम रणनीतियाँ निर्मित की जा रही हैं

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