Home / B.Ed / M.Ed / DELED Notes / पाठ्यचर्या की परिभाषाएँ | Definitions of Curriculum B.Ed Notes

पाठ्यचर्या की परिभाषाएँ | Definitions of Curriculum B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
Updated on:
Share via
Updated on:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

पाठ्यचर्या एक शिक्षण प्रक्रिया है जिसमें विद्यार्थियों को विभिन्न ज्ञान, कौशल और मूल्यों का अध्ययन कराया जाता है। यह एक संरचित और संगठित पठन-लेखन, सुनने-बोलने, अभिव्यक्ति और समस्या-समाधान की प्रक्रिया है जो विद्यार्थियों को ज्ञान की आदान-प्रदान करती है।

पाठ्यचर्या विषयों की चयनित सूची, पाठ्यपुस्तकों, उपकरणों, परीक्षाओं और अन्य संसाधनों का एक समूह है जो शिक्षार्थियों को एक निश्चित शैक्षणिक पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाया जाता है। यह विद्यार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान और कौशल का विकास करने में मदद करता है।

पाठ्यचर्या की परिभाषाएँ Definitions of Curriculum - Sarkari DiARY

पाठ्यचर्या की प्रमुख उद्देश्यों में से एक है विद्यार्थियों को मूल्यों, नैतिकता और समाजसेवा के प्रति जागरूक बनाना। यह उन्हें जीवन के लिए तैयार करता है और उन्हें समाज के साथी और उपयोगी नागरिक बनाता है।

Also Read:  What is Digital Board and how its work

पाठ्यचर्या की परिभाषाएँ

पाठ्यचर्या की विभिन्न परिभाषाएँ निम्नलिखित है-

कनिंघम के अनुसार- ‘पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपनी विद्यालय में ढाल सके।

डीवी के अनुसार- सीखने का विषय या पाठ्यक्रम, पदार्थों, विचारो और सिद्धान्तों का चित्रण है। जो निरन्तर उद्देश्यपूर्ण क्रियान्वेषण से साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।

[catlist name=bed-deled]

सैमुअल के अनुसार– पाठ्यक्रम में शिक्षार्थी के वे समस्त अनुभव समाहित होते हैं जिन्हें वह कक्षा-कक्ष में, प्रयोगशाला में पुस्तकालय में, खेल के मैदान में, विद्यालय में सम्पन्न होने वाली अन्य पाठ्येत्तर क्रियाओं द्वारा तथा अपने अध्यापकों एवं साथियों के साथ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त करता है।

Also Read:  विशिष्ट शिक्षा एवं इसके उद्देश्यों | Special education and its objectives B.Ed Notes

होर्नी के शब्दों में – पाठ्यक्रम वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है। यह सीखने की क्रियाओं तथा शान्तिपूर्वक अध्ययन करने से कहीं अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास तथा क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार यह शिक्षार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी एवं संवेदनात्मक तत्वों को व्यक्त करता है। समाज के क्षेत्र में यह उस सबकी अभिव्यक्ति करता है जो कुछ जाति ने संसार के सम्पर्क में आने से किये हैं।

माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार- पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं। है जो विद्यालयों में परम्परागत रूप से पढ़ाये जाते हैं, बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है, जिनको विद्यार्थी विद्यालय, कक्षा पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेक अनौपचारिक सम्पर्कों से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।

Also Read:  Main recommendations of the Kothari Commission

बेन्ट और क्रोनेनवर्ग के अनुसार- पाठ्यक्रम पाठ्य-वस्तु का सुव्यवस्थित रूप है जो बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तैयार किया जाता है।

फ्रोबेल के मतानुसार- पाठ्यक्रम सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए।

Leave a comment