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भारतीय समाज की विशेषताएँ एवं प्रकार | Characteristics and types of Indian society B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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समाज व्यक्ति के सामूहिक, संगठित और सुरक्षात्मक प्रवृत्ति का परिणाम है। समाज में रहकर ही किसी व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्तियों का विकास हो सकता है, क्योंकि समाज में व्यवस्था है, और समाज अपने नागरिकों की चतुर्दिक उन्नति हेतु प्रयास भी करता है। समाज के लिए आंग्ल भाषा में ‘Society’ शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ मनुष्यों के समूह से है। व्यक्तियों के मध्य स्थापित सम्बन्धों के संगठित क्षेत्र को समाज कहा जाता है।

भारतीय समाज की विशेषताएँ एवं प्रकार | Characteristics and types of Indian society B.Ed Notes

समाज के स्वरूप का और अधिक स्पष्टीकरण निम्न परिभाषाओं के द्वारा होता है-

मैकाइवर तथा पेज के अनुसार- समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है, जो सदैव बदलता रहता है।

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गिडिंग्स के अनुसार- समाज स्वयं संघ है, संगठन है, औपचारिक सम्बन्धों का योग है जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति एक-दूसरे के साथ रहते हुए या सम्बद्ध हैं।

राइट के अनुसार– समाज का अर्थ केवल व्यक्तियों का समूह ही नहीं है। समूह में रहने वाले व्यक्तियों के जो पारस्परिक सम्बन्ध हैं, उन सम्बन्धों के संगठित रूप को समाज कहते हैं।

विशेषतायें – उपर्युक्त परिभाषाओं के पश्चात् समाज की निम्नांकित विशेषतायें ज्ञात होती हैं-

  1. समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है ।
  2. समाज में व्यक्ति परस्पर जुड़े होते हैं। 3. समाज व्यक्तियों के मध्य होने वाली अन्तर्क्रिया को द्योतित करता है।
  3. समाज स्वयं संगठन है।
  4. सम्बन्धों का संगठित रूप ही समाज है।
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प्रकार– समाज के कई प्रकार हैं अपने कार्य तथा स्वरूप अपनी प्रकृति के आधार पर समाजों का विभाजन किया गया है-

वर्तमान भारतीय समाज बन्द समाज से खुले समाज की ओर परम्परागत से मुक्त समाज की ओर अग्रसर हो रहा है। वर्तमान में अधिकांश देशों में इसी प्रकार के सभ्य समाज को ओर सुझाव विकसित हो रहा है। ऐसे समाज में बहुपति जैसे स्त्रियों से सम्बन्धित प्रभा तापीय और पितृप्रधान सामाजिक तत्त्वों की समाप्ति हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। बालिकाओं को समान रूप से शिक्षा प्रदान कर तथा अधिकारों और स्वतन्त्रता का उपभोग करने की छूट देकर। अभी भी कुछ ऐसे समाज हैं जो बन्द और आदिम हैं वहाँ पर आज भी बहुपति प्रथा देखने को मिलती है। कुछ आदिम समाजों में मातृवंशीयता और मातृप्रधानता के गुण आज भी मिलते हैं जो हमें सभ्य समाज अर्थात् हमारे वर्तमान समाज में उतारने चाहिए। जटिल समाजों में किसी नई व्यवस्था की स्थापना मुश्किल होती है, अतः सरल समाज की प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होकर समाज को और अधिक शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए जिससे उसके सभी सदस्य उन्नति कर सकें और अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें।

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