Home / B.Ed / M.Ed / DELED Notes / राधाकृष्णन आयोग का मूल्यांकन और इसके गुण और दोषों का विवरण B.Ed Notes by SARKARI DIARY

राधाकृष्णन आयोग का मूल्यांकन और इसके गुण और दोषों का विवरण B.Ed Notes by SARKARI DIARY

Updated on:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

यह आयोग विश्वविद्यालयी शिक्षा का एक अनुपम आयोग है जिसने भारतीय विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का अध्ययन कर उनके सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। आयोग का उद्देश्य देश की वर्तमान और भावी आवश्यकताओं के अनुसार विश्वविद्यालयी शिक्षा का सुधार और उसका विकास करना था। इस हेतु आयोग ने देश के विश्वविद्यालयों का निरीक्षण और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समस्याओं का गहन अध्ययन कर समाधान हेतु शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों के विचार प्रश्नावली के माध्यम से जाने और उन्हें अपने प्रतिवेदन में शामिल किया। सरकार ने इसके कुछ सुझावों को समयबद्ध तरीके से लागू भी किया। आयोग की संस्तुतियों के आधार पर इसके गुण-दोषों का विवेचन इस प्रकार है-

राधाकृष्णन आयोग का मूल्यांकन और इसके गुण और दोषों का विवरण B.Ed Notes by SARKARI DIARY

आयोग के गुण / विशेषताएँ (Merits / Characteristics of Commission)

  • आयोग ने विश्वविद्यालयी शिक्षा को समवर्ती सूची में रखने का सुझाव दिया व इस व्यवस्था हेतु केन्द्र और प्रान्तीय सरकारों का संयुक्त उत्तरदायित्व बनाया, क्योंकि किसी भी देश में उच्च राष्ट्रीय शिक्षा की व्यवस्था में केन्द्र सरकार की अहम भागीदारी होती है।
  • आयोग ने विश्वविद्यालयी शिक्षा के स्तर को बनाये रखने और विश्वविद्यालयों एवं उनसे सम्बद्ध महाविद्यालयों को आवश्यकतानुसार अनुदान देने हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गठन का सुझाव दिया तथा सरकार ने सन् 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान समिति को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के रूप में बदल दिया तथा सन् 1956 में इसे एक कानून द्वारा स्वतन्त्र संस्था का दर्जा दिया।
  • विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बद्ध महाविद्यालयों पर अंकुश लगाने हेतु इस आयोग ने विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बद्ध महाविद्यालयों के कार्य-दिवस (परीक्षा दिवसों के अतिरिक्त 180 कार्य दिवस) निश्चित किये, उनमें प्रवेश के लिए शैक्षिक योग्यता (माध्यमिक उत्तीर्ण) और आयु (कम से कम 18 वर्ष) निश्चित की तथा केवल योग्य छात्रों को ही प्रवेश देने की संस्तुति की। इसके साथ ही किसी सम्बद्ध महाविद्यालय में अधिक से अधिक 1500 व विश्वविद्यालय में अधिक से अधिक 3,000 छात्र संख्या निश्चित की।
  • यह पहला आयोग था जिसने तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम और सामान्य शिक्षा की अनिवार्यता पर बल दिया। इस स्तर पर किसी भी वर्ग कला, विज्ञान एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रम मैं सामान्य शिक्षा को अनिवार्य करने का सुझाव दिया, जिसमें सभी प्रकार की शिक्षा में समन्वय स्थापित हो सके तथा समाज में बहुज्ञानी व्यक्तियों का निर्माण हो।
  • इस आयोग ने विश्वविद्यालयों और सम्बद्ध महाविद्यालयों की दशा सुधारने, उनमें योग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति करने, योग्य छात्रों को प्रवेश देने कार्य दिवस बढ़ाने ट्यूटोरियल (Tutorial) सिस्टम लागू करने के साथ-साथ विचार गोष्ठियों के आयोजन का भी सुझाव दिया, जिससे शिक्षण स्तर में सुधार हुआ।
  • उच्च शिक्षा में अध्यापन हेतु योग्य व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए, आयोग ने शिक्षकों को वेतनमान और सेवाशर्तों में सुधार सम्बन्धी सुझाव दिया जिससे योग्य व्यक्ति इस ओर आकर्षित
  • आयोग ने केवल वरिष्ठता के आधार पर विश्वविद्यालयी शिक्षकों की पदोन्नति को योग्यता एवं शोध कार्य को महत्व देते हुए वरिष्ठता के साथ-साथ योग्यता और शोध कार्य के आधार पर देने की संस्तुति की।
  • आयोग ने विश्वविद्यालयों और सम्बद्ध महाविद्यालयों में शिक्षार्थियों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ बताई, जैसे- छात्रों के कल्याण हेतु ‘छात्र कल्याण बोर्ड का गठन, खेलकूद एवं शारीरिक शिक्षा की उचित व्यवस्था हेतु ‘शारीरिक शिक्षा निदेशकों की नियुक्ति, छात्रों की समस्याओं के समाधान हेतु छात्र अधिष्ठाताओं की नियुक्ति, छात्रों के लिए उचित मूल्य पर मध्याह्न भोजन की व्यवस्था और उनके आवास हेतु छात्रावासों की व्यवस्था आदि का सुझाव दिया।
  • इस आयोग ने विभिन्न प्रकार की व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा को उचित दिशा देने के लिए कृषि, वाणिज्य इंजीनियरिंग, चिकित्सा, विधि और शिक्षक-प्रशिक्षण के सुधार हेतु उपयुक्त सुझाव दिये। (10) विश्वविद्यालयी परीक्षाओं में सुधार हेतु रचनात्मक सुझाव देने की दिशा में, निबन्धात्मक परीक्षाओं में सुधार के साथ-साथ वस्तुनिष्ठ परीक्षाएं शुरू करने का सुझाव भी दिया था।
  • स्त्री शिक्षा के विकास के साथ-साथ सह-शिक्षा पर विशेष बल दिया।
Also Read:  भाषा नीतियाँ व किरत आयोग | Language Policies and Kirat Commission B.Ed Notes by SARKARI DIARY

आयोग के दोष या सीमाएँ (Demerits or Limitations of Commission)

आयोग के कुछ सुझाव तो बड़े उपयोगी थे, परन्तु कुछ बड़े विरोधाभासी व दोषयुक्त भी थे, जो इस प्रकार हैं-

  • आयोग द्वारा निर्धारित शिक्षा के उद्देश्यों में व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, चारित्रिक राजनीतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार के विकास की प्राप्ति सुनिश्चित की गई है, जो इतनी जटिल व व्यापक है कि ये उद्देश्य यथार्थता से परे, आदर्शवाद पर आधारित प्रतीत होते हैं, जिनकी प्राप्ति संदिग्ध लगती है।
  • आयोग ने शिक्षकों के वेतन कार्य और सेवा दशाओं के सम्बन्ध में जो सुझाव एवं संस्तुतियाँ प्रस्तुत की हैं वे विशेष उपयोगी और महत्वपूर्ण नहीं है। इससे शिक्षकों को विशेष लाभ नहीं हुआ।
  • आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा के उन्नयन के लिए उपयोगी सुझाव दिये हैं परन्तु उनके क्रियान्वयन में धन की कमी के कारण उनकी उपयोगिता फलीभूत न हो सकी जिससे विश्वविद्यालय शिक्षा का अभीष्ट उन्नयन न हो सका।
  • आयोग द्वारा धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाना भी उचित नहीं था, क्योंकि जहाँ तक धार्मिक व नैतिक शिक्षा की बात है, इसकी व्यवस्था स्नातक स्तर की शिक्षा में करना उचित नहीं है।
  • आयोग ने एक और यह स्वीकार किया कि भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम स्वीकृत क्षेत्रीय भाषाएँ होनी चाहिए तो दूसरी ओर यह सुझाव दिया कि जब तक क्षेत्रीय भाषाओं को इस योग्य नहीं बनाया जाता तब तक अंग्रेजी को ही शिक्षा का माध्यम बनाए रखा जाए और तीसरी और यह सुझाव दिया कि किसी भी क्षेत्र में राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से शिक्षा की सुविधा की छूट दी जाए।
Also Read:  NCERT Books for Class 1 to 12th – Download Free NCERT eBooks PDF Updated for 2023-24

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आयोग ने देश की वर्तमान विश्वविद्यालीय शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव की और तदनुरूप विभिन्न सुझाव व संस्तुतियाँ प्रस्तुत की, जिनके क्रियान्वयन से विश्वविद्यालीय शिक्षा में आशातीत प्रगति हुई।

Leave a comment