जीन पियाजे की बाल विकास संबंधी उपचारात्मक विधि: बाल विकास और शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में जीन पियाजे का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि बच्चों का संज्ञानात्मक विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है, जो उनके शारीरिक परिपक्वता और अनुभव के साथ-साथ आगे बढ़ता है। उनकी उपचारात्मक विधि इस बात पर प्रकाश डालती है कि बच्चे अपने पर्यावरण से कैसे सीखते हैं, गलतियों से कैसे समझ बनाते हैं, और सामाजिक परिवेश में कैसे समायोजन करते हैं।
संरचना निर्माण (Formation of Cognitive Structures)
पियाजे के अनुसार, बच्चे वस्तुओं और घटनाओं से जुड़ी अवधारणाओं को अनुभव के माध्यम से विकसित करते हैं। उदाहरण स्वरूप, यदि बच्चा बार-बार काँच की वस्तु को गिराता है और वह टूटती है, तो उसके मस्तिष्क में यह स्थायी संरचना बन जाती है कि काँच नाजुक होता है। यही प्रक्रिया आगे चलकर उसके सोचने-समझने की नींव बनाती है।
सम्मिलन (Assimilation)
सम्मिलन उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसमें बच्चा अपने पहले से मौजूद ज्ञान या अनुभव के आधार पर नई जानकारी को समझता है। उदाहरणतः, यदि बच्चे ने पहले कुत्ते को देखा है, तो वह नए जानवर (जैसे भेड़) को भी उसी वर्ग में रखने की कोशिश करता है। यह ज्ञान धीरे-धीरे संशोधित होकर स्पष्ट हो जाता है।
समायोजन (Accommodation)
जब नया अनुभव पुराने ज्ञान से मेल नहीं खाता, तो बच्चा अपनी सोच या संरचना में परिवर्तन करता है। यही समायोजन की प्रक्रिया है। यह बच्चे की लचीलापन क्षमता को दर्शाती है—वह अपने दृष्टिकोण को बदलकर वातावरण से मेल बैठाना सीखता है।
व्यवस्थापन (Organization)
पियाजे के अनुसार, जैसे-जैसे बच्चा सीखता है, वह विभिन्न सूचनाओं और अनुभवों को क्रमबद्ध और व्यवस्थित करता है। वह रंग, आकार, गुणों के आधार पर वस्तुओं को वर्गीकृत करता है, जिससे उसके भीतर क्रम और व्यवस्था की समझ विकसित होती है।
संतुलन (Equilibration)
संतुलन की प्रक्रिया में बच्चा विभिन्न अनुभवों और अवधारणाओं के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह मानसिक संतुलन बच्चे को नई अवधारणाएँ ग्रहण करने और पुरानी को संशोधित करने में मदद करता है। यही प्रक्रिया अंततः उसके संज्ञानात्मक विकास का आधार बनती है।
निष्कर्ष
जीन पियाजे की उपचारात्मक विधियाँ इस बात को रेखांकित करती हैं कि बच्चे एक निष्क्रिय प्राणी नहीं होते, बल्कि वे सक्रिय रूप से सीखते हैं, विचार करते हैं और अपने वातावरण के साथ तालमेल बिठाते हैं। उनकी यह सोच आज की निर्माणवादी शिक्षा प्रणाली (constructivist education) का मूल आधार बन चुकी है।
यदि शिक्षक इन विधियों को अपनाएं, तो वे न केवल बच्चों की सोच को दिशा दे सकते हैं, बल्कि उनके समग्र विकास को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं।