झारखंड – स्थानीय राजवंशों का उदय
- इस क्षेत्र में निवास करने वाली बहुसंख्यक जनजातियों ने अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न वंशों की स्थापना की, अनेक नए वंशों का भी उदय हुआ।
- प्रमुख राजवंश – छोटानागपुर खास क्षेत्र में नागवंश, पलामू में रक्सैल वंश, सिंहभूम क्षेत्र में पोड़हाट का सिंहवंश, मुंडा राज, पंचेत कांकजोल, क्योंझर आदि।
- पलामू क्षेत्र में रक्सैल वंश का आधिपत्य रहा, लेकिन स्थानीय जनजाति चेरो के विद्रोह ने रक्सैलों का प्रभाव सीमित कर दिया।
- स्थानीय जनजातियों में मुंडा जनजाति राजनीतिक रूप से ज्यादा प्रभावशाली जनजाति थी तथा मुंडाओं ने राज्य स्थापना के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए और सफलता भी प्राप्त की। इस जनजाति ने सर्वप्रथम रीसा मुंडा के नेतृत्व में राज्य का निर्माण किया। यह प्रथम मुंडा जनजातीय नेता था। इसने ही सुतिया पाहन नामक व्यक्ति को मुंडाओं का शासक नियुक्त किया था। सुतिया पाहन ने अपनी योग्यता का परिचय देते हुए ‘सुतिया नागखंड‘ नामक राज्य की स्थापना की। यह राज्य 7 गढ़ में विभक्त था।
नाग वंश
- नागवंश की स्थापना राजा फणिमुकुट राय ने की थी।
- इस वंश की राजधानी ‘खुखरा‘ थी। फणिमुकुट राय का जन्म 64 ई. में हुआ था तथा उन्होंने 83 ई. से 162 ई. तक शासन किया था।
- फणीमुकुट राय को नागवंश का आदि पुरुष भी कहा जाता है।
- विद्याभूषण लाल तथा प्रघुम्मन सिंह के अनुसार फणिमुकुट राय ने नागवंशी राज्य को 66 परगनों में विभाजित किया था। नागवंशी राज्य के पूरब में पंचेत राज्य तथा दक्षिण क्षेत्र में क्योंझर (उड़ीसा) राज्य स्थित था।
- फणिमुकुट राय ने अपनी राजधानी सुतियाम्बे (राँची जिला) में एक सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
- फणीमुकुट राय के बाद मुकुट राय, घट राय, मदन राय, प्रताप राय तथा दर्दनाक शाह शासक बने।
- बेनीराम मेहता द्वारा तैयार नागवंशावली के अनुसार प्रताप राय, चतुर्थ नागवंशी शासक था। वह सुतियाम्बे से राजधानी बदलकर चुटिया (स्वर्णरेखा के तट) पर ले गया था।
- ग्यारहवीं सदी के उतरार्द्ध में मध्य प्रदेश के त्रिपुरी (जबलपुर के पास) के कलचुरी शासकों ने नागवंश पर आक्रमण किया था।
- कलचुरी शासक लक्ष्मी कर्ण के समय गंधर्व राय नागवंश का शासक था, जिसके बाद भीमकर्ण शासक बना था।
- नागवंश में ‘कर्ण‘ की उपाधि कलचुरियों से प्रभावित थी। भीमकर्ण ने भीम सागर का निर्माण करवाया था।
- शिवदास कर्ण ने हापामुनि मंदिर (गुमला) में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवायी।
- ऐनीनाथ शाहदेव 1691 ई. में जगन्नाथ मन्दिर (रांची) का निर्माण कराया था।
- सरगुजा, छतीसगढ़ में हैहयवंशी रक्सैलों ने अपना शासन स्थापित कर लिया था। रक्सैलों ने 12 हजार घुड़सवार सैनिकों के साथ नागवंशी शासक भीमकर्ण पर आक्रमण किया था, लेकिन भीमकर्ण ने बरवा की लड़ाई में रक्सैलों को पराजित कर दिया तथा बरवा एवं टोरी (लातेहर) तक अपना शासन स्थापित कर लिया था। भीमकर्ण ने अपनी राजधानी चुटिया से पुनः खुखरा स्थानांतरित की थी।
रक्सैल वंश
- रक्सैल राजपूत वंश था, जो राजपूताना क्षेत्र से रोताश्वगढ़ (रोहतासगढ़) होते हुए इस क्षेत्र में आए थे एवं उन्होंने पलामू से सरगुजा क्षेत्र तक अपना शासन स्थापित कर लिया था। पलामू क्षेत्र में पहुंचने पर रक्सैल दो शाखाओं में विभाजित हो गए थे।
- एक दल हरिहरगंज- महाराजगंज के मार्ग से होते हुए देवगन में आकर बसा था, जबकि दूसरा दल पांकी के मार्ग से होते हुए कुंडेलवा में बसा था।
चेरो खरवार वंश
- सोलहवीं सदी तक रक्सैलों को चेरो शासकों ने अपदस्थ कर अपना शासन स्थापित कर लिया। इन जातियों में सबसे प्रमुख खरवार जनजाति थी, जिसने पलामू के जपला क्षेत्र में अपना शासन स्थापित किया था।
- प्रताप धवल खरवार इस जनजाति का सबसे प्रसिद्ध शासक था। जिसके शिलालेख बिहार के तिलैथ (1158), ताराचंडी (1169) तथा फुलवारी (1169) से मिले हैं।
मानवंश
- मानवंश के राजाओं ने हजारीबाग और सिंहभूम पर शासन किया, जो अत्यंत क्रूर थे। मानवंश की जानकारी का स्रोत कवि गंगाधर द्वारा लिखित 1373-78 ई. के बीच का गोविंदपुर (धनबाद) का शिलालेख था। दूधपानी (हजारीबाग) से आठवीं सदी का शिलालेख प्राप्त होता है।
- इस समय मानभूम में निवास करने वाली सबर जनजाति मान राजाओं के अत्याचार से परेशान होकर पंचेत क्षेत्र में पलायन कर गई थी।
- स्थानीय भूमिजों ने इनके बढ़ते अत्याचारों के विरुद्ध भूमि स्वराज आंदोलन चलाया था।
रामगढ़ राज्य
- रामगढ़ राज्य का संस्थापक बाघदेव सिंह था, जिसने 1368 ई. में स्वतंत्र रामगढ़ राज्य की स्थापना की थी।
- बाघदेव सिंह तथा उसका बड़ा भाई सिंहदेव सिंह नागवंशी राजाओं के सामंत थे, जिसने पहले कर्णपुरा परगने पर तथा बाद में 21 परगनों पर अधिकार कर लिया था तथा सिसिया को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था।
- रामगढ़ राज्य की राजधानी सिसिया के बाद क्रमशः उरटा, बादम और अंततः रामगढ़ में स्थापित हुई।
खड़गडीहा राज्य
हजारीबाग और गया के बीच पन्द्रहवीं सदी में खड़गडीहा राज्य की स्थापना इस क्षेत्र में निवास करने वाली बंदख जाति को परास्त कर हंसराज देव द्वारा की गई थी।
पंचेत राज्य
पंचेत राज्य मानभूम क्षेत्र में स्थापित था । इस राज्य की स्थापना का संबंध काशीपुर के राजा अनीत लाल से है। इसने कपिला गाय की पूंछ को राजचिन्ह घोषित किया था।
सिंह वंश
⁕ सिंहभूम में पोड़हाट के सिंह वंश का प्रभुत्व था। इतिहासकारों का मानना है, कि ये राजस्थान क्षेत्र से आने वाले राठौर राजपूत के वंशज थे जो यहाँ आकर दो शाखाओं में बंट गए थे।
- प्रथम शाखा के संस्थापक काशीनाथ सिंह थे, जिन्होंने पोड़हाट राज्य की स्थापना की थी।
- सन् 1205 में इस वंश की दूसरी शाखा का उदय हुआ, जिसका संस्थापक दर्पनारायण सिंह था। दर्पनारायण सिंह के बाद सन् 1262 से 1271 तक युधिष्ठिर शासक बना और 9 वर्ष पश्चात् उसका पुत्र काशीराम सिंह सिंहभूम का राजा बना।
⁕ काशीराम सिंह ने बनाई क्षेत्र में पोड़हाट को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था। काशीराम सिंह के बाद अच्यूत सिंह शासक बना था।
⁕ अच्यूत सिंह ने ही ‘पौरी देवी’ को अपने राज्य के अधिष्ठात्रि देवी के रूप में स्थापित किया था । अच्यूत सिंह के बाद त्रिलोचन सिंह और अर्जुन सिंह प्रथम शासक नियुक्त हुए थे ।
⁕ इस वंश का तेरहवां राजा जगन्नाथ सिंह था, जो क्रूर, निर्दयी और विलासी था। इसके अत्याचारों ने भुइयां विद्रोह को जन्म दिया था। बारहवीं शताब्दी के अंत तक सिंह वंश अपने उत्थान पर था।
ढाल वंश
- सिंहभूम के ढालभूम क्षेत्र में ढालवंश ने अपना शासन स्थापित किया था। पंचेतों की तरह ढाल राजा संभवतः धोबी जाति के थे तथा नरबलि प्रथा के समर्थक थे।
- बेंगलर के अनुसार ढाल राजा ने ब्राह्मण कन्या से विवाह किया था जिससे उत्पन्न बालक ने ही ढालभूम राज्य की स्थापना की थी।
- इस तरह प्रारंभ से लेकर पूर्व मध्यकाल तक छोटानागपुर के राजवंशों में नाग वंश सबसे अधिक शक्तिशाली रहा, जिसने कई बाहरी आक्रमणकारियों से इस क्षेत्र की रक्षा की।
- इसी वंश के शासनकाल में इस क्षेत्र में सबसे अधिक विकास भी हुआ। यह सब तभी संभव हो सका, जब स्थानीय लोगों ने भी उन्हें भरपूर सहयोग किया।