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शारीरिक शिक्षा क्या हैं एवं इसके उद्देश्य एवं लक्ष्य B.Ed Notes

Published by: Ravi Kumar
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सामान्य बोलचाल की भाषा में शारीरिक शिक्षा का अर्थ प्रायः शारीरिक क्रियाओं अथवा गतिविधियों से लिया जाता है। वस्तुतः शारीरिक शिक्षा के अर्थ एवं प्रत्यय में परिवर्तन युगीन परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार होता रहा है परंतु फिर भी शारीरिक शिक्षा) के मूल अर्थ को संक्षेपतः व्यक्त करते हुए कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा वह शिक्षा है, जो स्वस्थ शारीरिक विकास हेतु विविध आंगिक क्रियाओं एवं कार्यक्रमों द्वारा दी जाती है, जो न केवल बालक के शारीरिक पक्ष को ही प्रबल व पुष्ट नहीं बनाती है वरन् इससे उसके व्यक्तित्व के अन्य पक्ष यथा मानसिक, सांवेगात्मक सामाजिक एवं नैतिक पक्ष भी सुविकसित होते हैं ।

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चार्ल्स ए. बुचर के अनुसार- “शारीरिक शिक्षा सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग और उद्यम का क्षेत्र है, जिसका उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावात्मक तथा सामाजिक रूप से सम्पूर्ण नागरिकों का इस प्रकार की क्रियाओं द्वारा विकास करना है जिनका चयन उनके उद्देश्यों की पूर्ति को ध्यान में रखकर किया गया हो।”

जे. पी. थॉमस के अनुसार– “शारीरिक शिक्षा शारीरिक गतिविधियों द्वारा बालक के समग्र व्यक्तित्व विकास हेतु दी जाने वाली शिक्षा है।” डी. ओबरट्यूफर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का सामूहिक प्रभाव है जो शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति को प्राप्त होते हैं।

माध्यमिक शिक्षा आयोग के विचार (Views of Secondary Education) – माध्यमिक शिक्षा आयोग ने शारीरिक शिक्षा को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-

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“शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य कार्यक्रमों का एक अति अनिवार्य भाग है। इसकी विभिन्न क्रियाओं को इस प्रकार करवाया जाये कि विद्यार्थियों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का विकास हो, उनकी मनोरंजनात्मक क्रियाओं में रुचि बढ़े तथा उनके भीतर सामूहिक भावना, खेल भावना तथा दूसरों का आदर करना आदि विकसित हो। अतः शारीरिक शिक्षा केवल शारीरिक दिल अथवा नियमबद्ध व्यायाम से बहुत ऊंची वस्तु है। उसमें सभी प्रकार की वह शारीरिक क्रियाएँ तथा खेल सम्मिलित हैं जिनके द्वारा शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है।”

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Ravi Kumar is a content creator at Sarkari Diary, dedicated to providing clear and helpful study material for B.Ed students across India.

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