शिक्षण के सिद्धांत विद्यार्थियों को ज्ञान और सीखने के तरीकों के बारे में निर्दिष्ट नियमों और मार्गदर्शन का संग्रह हैं। यह शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे प्रभाव को बढ़ाने और विद्यार्थियों के संगठन, समझ, और सीखने क्षमता को विकसित करने का माध्यम हैं।
शिक्षण के सिद्धान्त (Principles of Teaching)
शिक्षण के सिद्धांत शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करते हैं और शिक्षा के मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन सिद्धांतों के अनुसार, शिक्षकों को छात्रों के आधारभूत ज्ञान को स्थापित करने, उनकी समझ को विकसित करने, और उनकी सीखने क्षमता को प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी होती हैं। यह भी महत्वपूर्ण हैं कि शिक्षक छात्रों के रुचि और अभिरुचियों को समझें और उन्हें उनकी शिक्षा में समाहित करें।
(I) करके सीखने का सिद्धान्त– बालक स्वभाव से क्रियाशील प्राणी है इसलिए उसे करके सीखने का अवसर देना चाहिए।
(2) रुचि का सिद्धान्त- जिस कार्य में बालक की रुचि होती है वह उसे अवश्य करता है इसलिए शिक्षक को बालक में कार्य के प्रति रूचि उत्पन्न करनी चाहिए।
(3) आवृत्ति का सिद्धान्त- बालक द्वारा अर्जित ज्ञान स्थायी बनाने के लिए उसे दोहराना चाहिए।
(4) रचना और मनोरंजन का सिद्धान्त- बालक से जो भी क्रिया कराई जाए वह रचनात्मक और मनोरंजक होनी चाहिए।
(5) लोकतन्त्रात्मक व्यवहार का सिद्धान्त- शिक्षा प्रभावी हो इसके लिए कक्षा का वातावरण लोकतन्त्रात्मक होना चाहिए।
(6) विभाजन का सिद्धान्त- पाठ्य विषय को सहज और सरल बनाने के लिए उसे क्रमिक सोपानों में विभाजित किया जाए।
(7) प्रेरणा का सिद्धान्त- प्रेरणा से छात्र कार्य करने के लिए प्रोत्साहित होता है अतएव बालक को सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(8) जीवन से सम्बन्धित करने का सिद्धान्त- अनुभवों का समूह ही जीवन है। अतः बालक को जो भी सिखाया जाए उसका सम्बन्ध उसके जीवन के अनुभवों के साथ किया जाए।
(9) निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त- हम कुछ और भी करते हैं उसका कोई न कोई प्रयोजन होता है अतएव प्रत्येक पाठ का भी एक निश्चित उद्देश्य होना चाहिए।
(10) नियोजन का सिद्धान्त– सफलता प्राप्ति का आधार पूर्व नियोजित है इसलिए शिक्षण में सफलता हासिल करने के लिए पाठ्य वस्तु का पूर्व नियोजन किया जाए।
(11) चयन का सिद्धान्त- ज्ञान का क्षेत्र अति व्यापक है अतः बालक की योग्यता के आधार पर उपयोगी बातों का चयन किया जाए।
(12) व्यक्तिगत भेदों का सिद्धान्त- बालकों में व्यक्तिगत भेद पाये जाते हैं अतः शिक्षण देते समय उनके व्यक्तिगत भेदों को ध्यान में रखा जाए।
शिक्षण के सिद्धांतों में कई अलग-अलग धारणाएं हो सकती हैं, जैसे कि सामान्यतः ज्ञान को अभिवृद्धि करने के लिए स्पष्ट और सुगम तरीकों का प्रयोग करना, छात्रों के रुचि और अभिरुचियों को महत्व देना, छात्रों को व्यावहारिक और जीवन में उपयोगी ज्ञान प्रदान करना, और उन्हें स्वतंत्र और सक्रिय शिक्षा का अनुभव करने का मौका देना।