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विशिष्ट बालकों के निर्देशन | Guidance for special children B.Ed Notes

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विशिष्ट बालकों का निर्देशन शिक्षा के लिए अत्यधिक आवश्यक है क्योंकि निर्देशन वह व्यवस्था है जिसके द्वारा शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग बालकों की शिक्षा प्रशिक्षण सही हो सकता है। उनके विकास कार्यात्मकता, गुणवत्ता को बनाया जा सकता है और उनका सामान्य संतुलित विकास किया जा सकता है। सामान्य जन-जीवन में विशिष्ट बालकों का वर्गीकरण हो जाता है, जैसे शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग बालक, मंद बुद्धि, पिछड़े, असमायोजित व अति प्रतिभाशाली बालक होते हैं। इनके लिए शैक्षिक व व्यावसायिक दोनों प्रकार का विशेष निर्देशन आवश्यक होता है क्योंकि विशिष्ट बालक भी समाज के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं।

भारत में ही लगभग 5 करोड़ के करीब अक्षम बालक हैं जो किसी न किसी रूप में विकलांग हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनको समाज का हिस्सा न समझा जाए इसलिए ऐसे बालकों के लिए व्यापक निर्देशन की आवश्यकता होती है।

विशिष्ट बालकों के निर्देशन | Guidance for special children B.Ed Notes

विशिष्ट बालकों के निर्देशन का अर्थ है ऐसे बालकों के लिए विशेष रूप से दिशा निर्देश किए जायें जिससे वे सामान्य व्यक्ति के समान समाज का एक अंग बन सकें।

निर्देशन‘ शब्द उन समस्त सेवाओं की ओर संकेत करता है जो कि एक व्यक्ति को निम्नलिखित योग्यताओं के विकास में सहायता करता है-

  • अपने लिए उचित उद्देश्यों को निर्धारित करना ।
  • ऐसे तरीकों का प्रबंध करना जिनसे इन उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।
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एक पूर्ण निर्देशन सेवा में निम्नलिखित बातों का होना अनिवार्य है-

  • एक व्यक्ति को अपने को समझने में सहायता करना ।
  • प्रत्येक व्यक्ति में रुचि तथा इच्छाएँ जाग्रत करना जो कि समाज के अनुरूप हो।
  • उचित सम्प्राप्ति को जाग्रत करना ।
  • व्यक्ति को अपने वातावरण से अवगत कराना ।
  • अत्यधिक अनुभव प्रदान करना ।
  • अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अत्यधिक अवसर प्रदान करना।
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विशिष्ट बालकों को शैक्षिक और व्यावसायिक दोनों प्रकार का निर्देशन देना चाहिए यद्यपि इनके निर्देशन का अधिकतर भाग शैक्षिक निर्देशन होता है। दोनों प्रकार के निर्देशन प्रदान करने की सबसे अच्छी संस्था विद्यालय है

एक विशिष्ट प्रकार की निर्देशन आवश्यकताएँ एक सामान्य बालक की आवश्यकता से किसी भी प्रकार कम नहीं है। विशिष्ट बालकों को निर्देशन समूह में न देकर व्यक्तिगत रूप से देना चाहिए । इसका कारण यह है कि प्रत्येक विशिष्ट बालक की आवश्यकता भिन्न होती है। इनको निर्देशन सेवाएँ इस प्रकार दी जानी चाहिए-

  • निर्देशन उन सभी विशिष्ट बालकों को देना चाहिए जो स्कूल में आते हैं।
  • स्कूल निर्देशन सेवा को अन्य बाहरी निर्देशन सेवाओं से भी सहायता लेनी चाहिए।
  • स्कूल निर्देशन सेवा में उन सभी साधनों का प्रयोग करना चाहिए जो इसके लिए उपलब्ध व आवश्यक हों।

निर्देशन तथा व्यक्तित्व विकास-

एक व्यक्ति की अच्छी जिन्दगी उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करती है। निर्देशन सेवाएँ विशिष्ट बालकों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हो सकती हैं। उसके लिए विशिष्ट बालकों की आवश्यकताओं तथा निर्देशन की आवश्यकताओं को भली-भाँति समझना चाहिए। एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है-सुरक्षा स्वतंत्रता तथा आत्म-प्रदर्शन की आवश्यकताओं के बीच स्वीकारात्मक संतुलन इस ओर विशिष्ट बालकों की निर्देशन सेवाओं को प्रयत्न करना चाहिए। सर्वप्रथम निर्देशक द्वारा व्यक्तित्व का विकास होना चाहिए और इसके लिए व्यक्तित्व में कुछ विशेषताएँ पैदा करने चाहिए-

  • शारीरिक अक्षमता को स्वीकारना
  • स्वतंत्र व्यक्तित्व का विकास
  • सुरक्षा
  • आत्म-विश्वास
  • आत्म-प्रदर्शन की क्षमता व उपयुक्त शिक्षा
  • किसी कार्य, व्यवसाय का रोजगार में दक्षता
  • उसको कार्य अनुभव के बाद रोजगार की प्राप्ति
  • ‘जीवन एक संघर्ष’ के साथ जीना चाहिए।
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ये बातें व्यक्तित्व विकास के लिए ‘व्यापक निर्देशन‘ कार्यक्रम द्वारा चलाई जानी चाहिए ताकि शैक्षिक व व्यावसायिक प्रशिक्षण से पूर्ण एक संतुलित व्यक्तित्व की आधारशिला तैयार हो सके।

अक्षम बालक के लिए विशेष निर्देशन-

अक्षम बालक कई प्रकार के होते हैं। निर्देशन प्रदान करने से पहले उनकी यह पहचान अनिवार्य है कि वे किस प्रकार के अक्षम बालक हैं। शारीरिक रूप से अक्षम एक बालक की पहचान विद्यालय में भली प्रकार से नहीं हो सकती। इसके लिए उन्हें क्लीनिक में भेजना चाहिए। अक्षम बालक के निर्देशन के लिए निर्देशनकर्ता को विद्यालय में होना अनिवार्य है। इन बालकों की पहचान के समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-

  • उन कार्यों को करवाना जिन्हें अक्षम बालक भी उतने ही प्रभावशाली ढंग से कर सकता है जितना कि कक्षा का सामान्य बालक ।
  • अक्षम बालक के कार्य की सफलता पर प्रसन्नता प्रकट करना और उसे स्वीकार करना ।
  • बालक से गति, सामाजिक कौशल तथा अन्य योग्यताओं से सम्बन्धित कार्य करवाना।

निर्देशन का मुख्य उद्देश्य बालकों को इस योग्य बनाना है कि वे अपने लिये उद्देश्यों को निर्धारित कर सकें । निर्देशन के द्वारा व्यक्ति को अपने वातावरण को समझने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। यह विशिष्ट बालकों के लिए महत्त्वपूर्ण है। चूँकि अक्षम बालक की योग्यताएँ सीमित होती हैं, अतः यह आवश्यक है कि ऐसे बालकों को इस बात का ज्ञान हो कि उनके पास कितनी योग्यता है। यदि विशिष्ट बालक को इस बात का ज्ञान हो जाए तो वह अपनी योग्यतानुसार अपने उद्देश्यों को निर्धारित कर सकता है। इससे उसे अन्य लोगों के समान जीवन में समायोजन स्थापित करने में सहायता मिलती है। एक भली प्रकार संयोजित निर्देशन इस क्षेत्र में सहायक हो सकता है।

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परामर्शदाता अक्षम बालकों की अनेकानेक कठिनाइयों के सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि उसके लिए क्लीनिक की सहायता अनिवार्य है। इसके साथ-साथ अक्षम एवं प्रतिभावान बालकों को एक कुशल परामर्शदाता द्वारा समय-समय पर परामर्श भी प्राप्त होना चाहिए। यह परामर्श बालक की समस्या को देखते हुए पूर्ण तथा आंशिक हो सकता है। परामर्शदाता का विशिष्ट बालकों के सम्बन्ध में मुख्य कर्तव्य है उनके वातावरण को समझकर उनके समायोजन के लिए प्रयत्नशील होना इसके लिए आवश्यक है कि वह

  • स्कूल व परिवार के वातावरण की पूर्ण जानकारी रखे।
  • विशिष्ट बालक की क्षमताओं व संभावनाओं को जाने
  • उनकी सीमाओं (Limits) को समझे
  • व्यक्ति इतिहास का अध्ययन करे
  • स्कूल प्रोग्रामों में सुधार लाए
  • स्कूल के बाहर उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाये और
  • शैक्षिक और व्यावसायिक परामर्श न केवल विशिष्ट बालकों को बल्कि उनके माता-पिता / अभिभावक को भी प्रदान करे।

प्रतिभाशाली बालकों के लिए जहाँ स्कूलों में ही समय-समय पर परामर्श होना चाहिए वहीं पर शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम बालकों के लिए पहले क्लीनिक की व्यवस्था हो जहाँ उनके स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य व कार्यक्षमता का पूर्ण ज्ञान किया जाए लेकिन जो चिकित्सक हो उसे मनोचिकित्सक की उपाधि प्राप्त हो तथा वह स्वास्थ्य के साथ ही उसकी मनोवृत्तियों का पूर्ण अध्ययन करे।

  1. शारीरिक/मानसिक दोष का इतिहास जाने ।
  2. अभिभावकों के वातावरण की जानकारी रखे।
  3. ऐसे बच्चों की क्षमताओं व संभावनाओं को समझे।
  4. इनके लिए विशेष स्कूल का परमर्श दे यदि स्कूल जाते हैं तो उनके स्कूल की व्यवस्था व शिक्षकों को देखे कि वे कैसे बच्चों का सुधार करते हैं।
  5. स्कूल कार्यक्रमों में सुधार लाए।
  6. अक्षम बच्चों की रुचियों व अभिवृत्तियों का अध्ययन करे।

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