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भाषाई पारिस्थितिकी (Language Ecology)

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भाषाई परिस्थितिकी एक विषय है जो भाषाओं, लोगों, और उनके पर्यावरण के आपसी संबंधों का अध्ययन करता है। इसमें भाषाओं के संबंध, प्रभाव, और विकास को ध्यान में रखा जाता है। भाषाएं एक साथ रहती हैं और एक दूसरे पर प्रभाव डालती हैं, जिससे वे सह-अस्तित्व बनाए रखती हैं। यह भाषाएं एक दूसरे के विकास पर भी प्रभाव डालती हैं। भाषाओं के आपसी संबंधों में शक्ति, प्रभुत्व, और आकर्षण के तत्व शामिल होते हैं। एक उदाहरण के रूप में, हिंदी और उर्दू के बीच का सह-उद्भव और सह-अस्तित्व प्रमुख है। राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन भी भाषाओं के स्थान और प्रभाव में बदलाव ला सकते हैं।

भारत में अंग्रेजी भाषा का आगमन, प्रसार, और वर्चस्व विविध पहलुओं के साथ एक गहरे सम्बन्ध को प्रकट करता है। यह न केवल भाषा के क्षेत्र में है, बल्कि इसका आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों पर भी प्रभाव होता है। व्यापारिक समुदाय और राजनीतिक शक्तियों के भाषा-नीति और उपयोग का इस पर असर पड़ता है। हिंदी भाषा के विकास में भी भारतीय व्यापारिक समुदायों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भाषा की स्थिति के संदर्भ में, हम आमतौर पर राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक कारकों की चर्चा करते हैं, लेकिन धर्म भी एक महत्वपूर्ण कारक है। धर्म और भाषा के बीच अनुबंधन, चाहे वह जानवर या अनचाहे हो, अक्सर देखा गया है।

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यह विचारशील प्रस्ताव धर्म और भाषा के संबंध पर गहरे परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करता है। पाकिस्तान, जो मुस्लिम धर्म के आधार पर निर्मित है, उर्दू को अपनी राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार करता है, जोकि भारत के हिस्से में उत्पन्न और विकसित हुई है। यह उदाहरण पाकिस्तान की सांस्कृतिक और भौगोलिक जटिलताओं को विचार करते हुए विशेषत: उर्दू भाषा को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

उर्दू का प्रयोग केवल 8% आबादी द्वारा किया जाता है, लेकिन इसका महत्व उसके प्राधिकृतिक और आधिकारिक स्थान पर है। यह न केवल एक भाषा है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है।

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भारत में, ईसाई समुदाय के कुछ क्षेत्रों में अंग्रेजी का प्रयोग अधिक होता है, जो भारतीय इतिहास, राजनीति, और शैक्षिक व्यवस्था के साथ गहरा जुड़ा हुआ है। यहाँ, भाषा केवल संचार का साधन नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना का भी हिस्सा है।

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संस्कृत भाषा ने हमारे समाज के सभी पहलुओं से गहरा संबंध बनाए रखा है। इसके माध्यम से हम समझ सकते हैं कि भाषा कैसे सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक विविधताओं को प्रतिबिम्बित करती है। भाषा की स्थिति में किसी भी समाजिक परिवर्तन में परिवर्तन आता है और यह समाज के संरचना और चिंतन को अधिकतम प्रभावित करता है। राजनीतिक तंत्र और सरकारी नीतियाँ भी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे कि भाषा की शिक्षा, उपयोग, और संरक्षण। स्थानीय संदर्भों में शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है जो भाषाओं को संरक्षित रखने के साथ-साथ भाषाई विविधता को भी समझते हैं और बढ़ावा देते हैं।

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