Home / B.Ed / M.Ed / DELED Notes / भारतीय शिक्षा आयोग | Hunter Commission B.Ed Notes

भारतीय शिक्षा आयोग | Hunter Commission B.Ed Notes

Last updated:
WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

सन् 1854 में घोषित वुड के घोषणा-पत्र का भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर व्यापक रूप से प्रभाव पड़ा। इसके उपरान्त यह व्यवस्था समुचित रूप से लगभग 25 वर्ष तक चलती रही। इसी बीच भारतीय इतिहास में एक महान् घटना घटित हुई, जिसे 1857 की क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। किन्तु इस क्रान्ति को अंग्रेजो ने अपनी दमनात्मक नीति द्वारा दबा दिया तथा धीरे-धीरे भारत में ब्रिटिश शासन सुदृढ़ हो गया।

1854 के घोषणा-पत्र में घोषित शिक्षा नीति के विरुद्ध, भारतीय तथा इंग्लैण्ड में ईसाई मिशनरिया परिवर्तन की मांग कर रही थीं। इन ईसाई मिशनरियों ने इंग्लैण्ड में ‘जनरल काउन्सिल ऑफ एजूकेशन इन इण्डिया’ संस्था का गठन किया तथा 1880 में नियुक्त भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन पर शिक्षा नीति में परिवर्तन हेतु दबाव डालने लगे, इस पर रिपन ने उन्हें भारतीय शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया। वास्तव में वुड द्वारा घोषित शिक्षा नीति अत्यधिक पुरानी (25 वर्ष) हो चुकी थी तथा यह अपेक्षित सफलता भी नहीं प्राप्त कर सकी थी।

अन्ततः लॉर्ड रिपन ने 3 जनवरी 1882 को भारतीय शिक्षा आयोग’ का गठन किया। रिपन ने अपनी परिषद् के एक सदस्य सर विलियम हण्टर (Sir William Hunter) की अध्यक्षता में 20 सदस्यीय आयोग का गठन किया, इसमें 7 सदस्य भारतीय थे। इस आयोग को हण्टर कमीशन या भारतीय शिक्षा आयोग- 1882 भी कहा जाता है।

भारतीय शिक्षा आयोग | Hunter Commission B.Ed Notes

हण्टर आयोग के अध्यक्ष सर विलियम हण्टर व सचिव बी. एल. राइस थे। इस आयोग में कुल 20 सदस्य थे जिनमें 7 भारतीय भी थे। आयोग ने सम्पूर्ण देश के शैक्षिक कार्यकलापों व परिस्थितियों की जांच व गहन अध्ययन कर, मार्च 1883 में 600 पन्नों का एक विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। जिसमें शिक्षा के लगभग सभी स्तरों एवं पक्षों पर महत्त्वपूर्ण अनुशंसायें की गई थीं।

हण्टर आयोग की प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित संस्तुतियाँ (RECOMMENDATIONS REGARDING PRIMARY EDUCATION)

हण्टर कमीशन ने प्राथमिक शिक्षा की तत्कालीन स्थिति का अध्ययन करके इससे सम्बन्धित सभी विषयों पर व्यापक सुझाव दिये। आयोग ने स्थानीय निकायों, जिला परिषदों तथा नगरपालिकाओं को इंग्लैण्ड की कन्ट्री काउन्सिल के आधार पर प्राथमिक शिक्षा का भार सौंपा।

Also Read:  कक्षा प्रबंधन के आयाम | Dimensions of Classroom Management B.Ed Notes

प्राथमिक शिक्षा की नीति (Policy of Primary Education)

प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग द्वारा एक निश्चित नीति का निर्माण किया गया-

  • प्राथमिक शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिये उपयोगी व जीवन के मूल्यों के अनुरूप हो।
  • प्राथमिक शिक्षा के प्रचार प्रसार तथा व्यवस्था के लिये सरकार द्वारा प्रयास किये जायें।
  • शिक्षा को केवल पढ़ाई के रूप में न लेकर, सामान्य शिक्षा के रूप में लिया जाये ताकि बाल मन पर दबाव न पड़े।
  • शिक्षा छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हो। (5) पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को सम्मिलित किया जाये, ताकि छात्र अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
  • प्राथमिक शिक्षा का माध्यम देशी भाषायें (प्रान्तीय भाषायें) होनी चाहिये।

प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Primary Education)

  • आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये-
  • जन शिक्षा का प्रसार
  • व्यवहारिक व सामान्य जीवन हेतु उपयोगी शिक्षा,
  • स्वावलम्बन व आत्मनिर्भर छात्र प्रदान करने वाली शिक्षा व्यवस्था ।

प्राथमिक शिक्षा का प्रशासन एवं वित्त (Administration & Finance of Primary Education)

हण्टर आयोग ने प्राथमिक शिक्षा का कार्य भार आयोग ने स्थानीय निकायों पर डाल दिया तथा निम्नलिखित सुझाव दिये-

  • प्राथमिक विद्यालयों का प्रशासन, स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं; जैसे- जिला परिषद् या नगर पालिका आदि के अधीन हो ।
  • ये संस्थायें ही अपने-अपने क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना करेंगी अध्यापकों की नियुक्ति करेंगी, वेतन का भुगतान तथा अन्य व्ययों का भुगतान करेंगी।
  • स्थानीय आवश्यकताओं और संसाधनों की आवश्यकता के अनुसार, आर्थिक सहायता की योजना बनायी जानी चाहिये।
  • विद्यालय के समस्त कार्यों का संचालन नियमं व कानूनों के अनुसार ही किया जाये।
  • पाठ्यक्रम के निर्धारण व निर्माण हेतु प्रान्तीय सरकारों को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान कर दी गई।
  • अन्य विषयों में सामान्य विज्ञान, गणित, कृषि, प्राथमिक चिकित्सा, बहीखाता, भौतिक विज्ञान इत्यादि विषयों के सामान्य ज्ञान को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाये।
  • स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप व्यवहारिक शिक्षा : जैसे- कताई, बुनाई, सिलाई, पशुपालन इत्यादि की भी व्यवस्था की जाये।
  • प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम परम्परागत प्रचलित स्थानीय भाषायें हो एवं इन भाषाओं के विकास हेतु प्रयत्न किये जायें।
  • प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा द्वारा दिये जाने के सिद्धान्त का पालन करने का प्रयास किया जाये।
  • शिक्षा प्रशिक्षण हेतु प्रत्येक विद्यालय निरीक्षक के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र में कम से कम एक नॉर्मल विद्यालय अवश्य हो।
  • नार्मल विद्यालयों के उपयुक्त संचालन हेतु धन का आवंटन, प्रान्तीय कोर्षो द्वारा पहले ही
  • देशी विद्यालयों के संचालन का कार्यभार, स्थानीय निकाय एवं विद्यालय परिषदों के अन्तर्गतकिया जाये।
  • स्वदेशी पाठशालाओं को सरकारी आर्थिक सहायता प्रदान की जाये।
  • पाठ्यक्रम में उपयोगी विषयों को सम्मिलित करने हेतु सुझाव दिये जायें।
Also Read:  स्कूल दर्शन की भूमिका: भविष्य को आकार देना B.Ed Notes

माध्यमिक शिक्षा पर सुझाव (SUGGESTIONS ON SECONDARY EDUCATION)

आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में भी स्पष्ट नीति की घोषणा की व निम्नलिखित सुझाव दिये। उसने माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के सम्बन्ध में अपनी नीति स्पष्ट करते हुये कहा था- सरकार का कर्त्तव्य प्रत्येक जिले में एक माध्यमिक विद्यालय स्थापित करना है। इसके बाद इसके और अधिक प्रयास का दायित्व व्यक्तिगत प्रयासों पर छोड़ देना चाहिये।

हण्टर कमीशन की रिपोर्ट

माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Secondary Education)

आयोग के प्रतिवेदन में माध्यमिक शिक्षा में निम्नलिखित उद्देश्य स्पष्ट किये गये-

  • जीवन उपयोग शिक्षा
  • सामान्य जीवन हेतु सफल शिक्षा व्यवस्था,
  • उच्च शिक्षा में प्रवेश हेतु छात्रों की उपयुक्त तैयारी।

माध्यमिक शिक्षा का प्रशासन एवं वित्त-प्रशासन व वित्त से सम्बन्धित निम्नलिखित सुझाव दिये गये-

  • माध्यमिक शिक्षा का सम्पूर्ण कार्यभार का संचालन कुशल एवं धनी/प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा किया जाय।
  • इन विद्यालयों में प्रशासन एवं प्रबन्धन हेतु दिशा-निर्देशन के लिये प्रत्येक जिले में एक सरकारी विद्यालय खोले जायें।
  • व्यक्तिगत प्रयासों से चलाये जा रहे माध्यमिक स्कूलों को सहायता अनुदान देने में किसी भी प्रकार का भेदभाव न करके उदारतापूर्वक अनुदान दिया जाय।

आयोग ने पाठ्यक्रम पर विशेष रूप से विचार कर, निम्नलिखित सुझाव दिये-

  1. अ पाठ्यक्रम – पाठ्यक्रम के पहले भाग में अर्थात् A-पाठ्यक्रम में साहित्यिक विषयों को स्थान दिया गया व अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किया गया। यह पाठ्यक्रम उच्च शिक्षा के प्रति रुचि रखने वाले छात्रों के लिये था।
  2. पाठ्यक्रम – यह पाठ्यक्रम जीवन उपयोगी पाठ्यक्रम था। इसमें विज्ञान, कृषि इत्यादि व्यवसायिक व रोजगारपरक विषयों को वरीयता प्रदान की गई। इसमें भी अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में रखा गया।

शिक्षा का माध्यम (Medium of Instruction) –

माध्यम के सम्बन्ध में आयोग ने कोई स्पष्ट सुझाव नहीं दिये-

  • इसमें परोक्ष रूप से वुड डिस्पैच में घोषित अंग्रेजी को ही माध्यम बनाये रखने का समर्थन किया गया।

शिक्षक प्रशिक्षण (Teacher’s Training) –

इससे सम्बन्धित निम्नलिखित सुझाव आयोग द्वारा दिये गये-

  • शिक्षा के स्तर में सुधार हेतु माध्यमिक शिक्षा में भी प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति पर बल दिया गया
  • प्रशिक्षित शिक्षकों की पूर्ति के लिये शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों की स्थापना पर बल दिया
Also Read:  भाषा की शक्ति | Power of Language B.Ed Notes

उच्च शिक्षा पर सुझाव (SUGGESTIONS ON HIGHER EDUCATION)

  • उच्च शिक्षा हेतु महाविद्यालयों की स्थापना पर बल दिया गया।
  • उच्च शैक्षिक संस्थाओं तथा महाविद्यालयों के प्रशासन तथा वित्त का सम्पूर्ण प्रबन्ध करने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत संस्थाओं पर डाल दी गई।
  • पाठ्यचर्या को व्यापक बनाने का सुझाव दिया गया।
  • राजकीय महाविद्यालय केवल उन्हीं स्थानों पर खोले जायें, जहाँ उन्हें खोलने की आवश्यकता हो, मांग हो एवं जनता इस कार्य में असमर्थ हो ।
  • उच्च शिक्षा में विषयों के चुनाव में छात्रों की रुचि का विशेष ध्यान रखा जाय ।
  • पाठ्यक्रम में अधिक से अधिक विषयों को सम्मिलित कर पाठ्यक्रम का रूप व्यापक व सार्वभौम बनाया जाय।
  • पाठ्य विषयक ज्ञान के साथ-साथ धर्म, मानवता तथा नैतिकता का ज्ञान भी छात्रों को कराया जाय।
  • पाठ्यक्रम में माध्यम अंग्रेजी को ही रखा गया।
  • आयोग ने सुझाव दिया कि महाविद्यालयों में प्राध्यापकों की नियुक्ति करते समय यूरोपीय
  • विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त भारतीयों को प्राथमिकता दी जाय।
  • बालिका विद्यालयों को सरकारी अनुदान देने की व्यवस्था की गई तथा अनुदान के नियम सरल व आसान बनाने की बात कही गई।
  • स्थानीय निकायों और प्रान्तीय कोषों द्वारा धन आवंटित करने की बात कही गई।
  • बालिकाओं की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई।
  • बालिकाओं की आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन किया गया।
  • बालिका विद्यालयों के निरीक्षण हेतु यथा संभव महिला निरीक्षकों की नियुक्ति की जाय।
  • स्थानीय निकायों द्वारा संचालित विद्यालयों में बिना भेदभाव के सभी को शिक्षा हेतु प्रवेश दिया जाय।
  • आदिवासियों की शिक्षा हेतु विशेष व्यवस्था की जाय।

भारतीय शिक्षा आयोग का भारतीय शिक्षा नीति पर प्रभाव (Impact of Hunter Commission on Indian Education Policy)

इस आयोग की संस्तुतियों ने भारतीय शिक्षा को व्यापक रूप से प्रभावित किया।

  • सरकार द्वारा इसकी समस्त संस्तुतियों व सुझावों को अपनाकर इन्हीं के आधार पर आगे कार्य किया गया।
  • आयोग की संस्तुतियों के अनुसार देश में महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि होने लगी- 1882 में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना, 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना।
  • आयोग की संस्तुतियों पर मिशनरियों ने 37 कॉलेज व निजी प्रबन्धन ने 42 कॉलेज खोले।
  • माध्यमिक व उच्च शिक्षा संस्थाओं का कार्यभार व्यक्तिगत हाथों में देने से शिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ, किन्तु इसके स्तर में गिरावट अवश्य आ गई।
  • सरकार ने सहायता अनुदान की शर्तों को सरल बना दिया।
  • ईसाई मिशनरियों के प्रति भी समान नियम व शर्तें लागू की गई व भेदभाव की नीति को त्यागकर समानता पर बल दिया।

इस आयोग की संस्तुतियां द्वारा कई दूरगामी प्रभाव पड़े-

  • इस शिक्षा नीति के उपरान्त सीधे 1904 में लॉर्ड कर्जन ने नवीन शिक्षा नीति की घोषणा की
  • प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च स्तर पर विद्यालयों व महाविद्यालयों की संख्या व छात्रों की संख्या में महान् वृद्धि हुई।
  • उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी प्रसार हुआ। जैसे- 1880 में बाल गंगाधर तिलक ने फरग्यूसन कॉलेज की स्थापना पूना में की, 1886 में लाहौर में दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की (आर्य समाज द्वारा), 1887 में कोलकाता. मुम्बई व चेन्नई में विश्वविद्यालयों में विज्ञान की उच्च शिक्षा की व्यवस्था की गई. 1898 में श्रीमती एनी बेसेन्ट ने बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना की।

Leave a comment