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झारखंड का छऊ लोकनृत्य – छऊ नृत्य के बारे में

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छऊ का शाब्दिक अर्थ ‘छाया’ होता है।

इस नृत्य का प्रारंभ सरायकेला में हुआ तथा यहीं से यह मयूरभंज (उड़ीसा) व पुरूलिया (प० बंगाल) में विस्तारित हुआ ।

अपनी विशिष्ट शैली के कारण छऊ नृत्य को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष ख्याति प्राप्त है।

यह पुरूष प्रधान नृत्य है।

इसका विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई. में सुधेन्द्र नारायण सिंह द्वारा किया गया।

इस नृत्य का प्रदर्शन 1941 ई. में महात्मा गाँधी के समक्ष भी किया गया था।

यह झारखण्ड का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसकी तीन शैलियाँ सरायकेला (झारखण्ड), मयूरभंज (उड़ीसा) तथा पुरूलिया (प० बंगाल) हैं।

ज्ञात हो कि छऊ की सबसे प्राचीन शैली ‘सरायकेला छऊ’ है।

झारखण्ड के खूंटी जिले में इसकी एक विशेष शैली का विकास हुआ है, जिसे ‘सिंगुआ छऊ’ कहा जाता है।

यह एक ओजपूर्ण नृत्य है तथा इसमें विभिन्न मुखौटों को पहनकर पात्र पौराणिक व ऐतिहासिक

कथाओं का मंचन करते हैं। ( इसके अतिरिक्ति कठोरवा नृत्य में भी पुरूष मुखौटा पहनकर नृत्य करते हैं)

मयूरभंज शैली के छऊ नृत्य में मुखौटे का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस नृत्य में प्रयुक्त हथियार वीर रस के तथा कालिभंग श्रृंगार रस को प्रतिबिंबित करते हैं ।

इस नृत्य में भावो की अभिव्यक्ति के साथ-साथ कथानक भी होता है जबकि झारखण्ड के अन्य लोकनृत्यों में केवल भावों की अभिव्यक्ति होती, कथानक नहीं ।

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सरायकेला तथा मयूरभंज शैली के छऊ नृत्य में तांडव व लास्य (कोमल व मधुर ) नृत्य शैलियों का प्रयोग किया जाता है, जबकि पुरूलिया शैली के छऊ में केवल तांडव नृत्य का प्रयोग किया जाता है। शैली

मयूरभंज शैली का विकास रूक-मार-नाचा से माना जाता है जिसका अर्थ है – ‘हमले एवं रक्षा का नृत्य’।

सरायकेला छऊ का आधार परीखंडा नामक युद्ध माना जाता है, जो तलवार एवं ढाल का परंपरागत खेल है।

माना जाता है कि पुरुलिया छऊ की उत्पत्ति दो योद्धाओं के मध्य लड़ाई से हुयी है।

सरायकेला छऊ में शब्दों का वाचन नहीं होता है, बल्कि इसमें केवल पार्श्व संगीत होता है।

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सरायकेला व मयूरभंज छऊ नृत्य के प्रारंभ में भैरव वंदना (शिव की स्तुति) की जाती है।

इसमें प्रशिक्षक/गुरू की उपस्थिति अनिवार्य होती है

वर्ष 2010 में छऊ नृत्य को यूनेस्को द्वारा “विरासत नृत्य’ में शामिल किया गया है।

वर्ष 2022 में नरेन्द्र मोदी स्टेडियम, अहमदाबाद (गुजरात) में आईपीएल के समापन समारोह में प्रभात कुमार महतो (छऊ कलाकार सह नटराज कला केन्द्र, चोगा के सचिव) द्वारा छऊ नृत्य का प्रदर्शन किया गया।

 

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