पारसनाथ 20 जैन तीर्थकरों का निर्वाण स्थल है। अतः प्राचीनकाल से ही यह जैन धर्मावलंबियों का तीर्थस्थल रहा है।
पारसनाथ आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित है तथा यह आदिवासी समुदाय का भी धार्मिक स्थल है।
वर्षों से दोनों समुदाय (जैन तथा आदिवासी) के लाग यहाँ भाइचारे व सामंजस्य के साथ पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं।
हाल ही में झारखण्ड सरकार की सिफारिश पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पारसनाथ क्षेत्र को ‘इको सेंसेटिव जोन‘ घोषित किया गया है तथा झारखण्ड की नयी पर्यटन नीति में इसे ‘पर्यटन क्षेत्र’ घोषित किया गया है।
17 मार्च, 2022 को जारी एक अधिसूचना में इस क्षेत्र के लिए ‘इको-टूरिज्म‘ शब्द का प्रयोग किए जाने पर विवाद खड़ा हो गया। जैन समुदाय के लोगों का मानना है इस क्षेत्र को ‘पर्यटन क्षेत्र’ घोषित किये जाने पर यहाँ मांस-मदिरा आदि का सेवन होगा जिससे जैन भावनाएं आहत होंगी। अतः इसे धार्मिक क्षेत्र का ही दर्जा दिया जाए।
इस विवाद के बाद पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगा दी गयी है तथा इसका हल ढूँढने का प्रयास किया जा रहा है।